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देना चाहता हूँ कि आपने इस संगोष्ठी में शामिल होकर इसे सफल बनाया है। मैं आशा करता हूँ कि आपकी जो परिचर्चाएँ (Deliberations) हुई हैं, उनसे समाज में एक नई चेतना का प्रादुर्भाव होगा। मिश्रजी ने अपने स्वागत-भाषण में बतलाया था कि इस संस्थान का उद्देश्य केवल प्राकृत-भाषा, जैनशास्त्र एवं अहिंसा में शोध एवं अध्ययन-अध्यापन-कार्य करना ही नहीं, वरन् उससे समाज के जन-जीवन में एक नया जागरण पैदा करना तथा सर्वसामान्य जनमानस को प्रभावित करना भी है। आज यह संगोष्ठी उस जगह हो रही है, जहाँ भगवान् महावीर का जन्म हुआ था। किसी जमाने में भगवान् बुद्ध ने भी यहाँ सत्य एवं अहिंसा के सिद्धान्तों का प्रचार किया था। मैं चाहूँगा कि इस संगोष्ठी के बाद देशवासियों को, विशेषकर नवयुवकों को एक सन्देश मिले, जिसे मैं वैशाली का सन्देश (Message of Vaishali) कहना चाहूँगा। मुझे पूरा विश्वास है कि वैशाली से प्राप्त होनेवाले इस सन्देश पर अमल करके ही हम धरती पर स्वर्ग का राज्य (Kingdom of Heaven on earth) ला सकेंगे। इन्हीं शब्दों के साथ एक बार फिर मैं आप सभी को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ और अन्तःकरण से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ।
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