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अनेकान्तवाद और अहिंसा : एक शास्त्रीय परिशीलन
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यजुर्वेद आदि अन्य वेदों में भी सर्वत्र ही अहिंसा के आचरण का ही व्यवधान-रहित उपदेशपूर्ण विधान निहित है। किन्तु मध्यकाल में कुछ स्वार्थियों ने वेद की व्याख्या (भाष्य-सहित) में भी पशुहिंसा के विषय को घुसेड़ दिया। प्राचीन वेदभाष्यों में कहीं भी हिंसा का जिक्र तक नहीं है। वेदों के विषय में कहा गया कि वे यज्ञ के लिए रचे गए। वेद-ब्राह्मणों के भाष्यकार सायण ने यद्यपि अपने ग्रन्थ 'ऋग्वेदभाष्यभूमिका' में वेद को ईश्वर के निराकारत्व-प्रतिपादक और अहिंसादि सत्कर्मों का ग्रन्थ माना है, किन्तु भाष्य करते समय वे अपनी इस प्रतिज्ञा और स्थापना से हट गये हैं। सायण ने पूर्ववर्ती भाष्यकार उव्वट-महीधर को आदर्श मानकर यजुर्वेद की काण्वसंहिता के भाष्य में यज्ञ के अन्तर्गत पशुहिंसा और अश्लीलता का भी विधान कर दिया।
ऋग्वेद के आरम्भ के अग्निसूक्त में 'यज्ञ' को अध्वर कहा गया है । 'ध्वर' हिंसार्थक धातु है और जहाँ हिंसा नहीं की जाए, वह 'अध्वर' यज्ञ हुआ। 'यज्' देव-पूजा-संगतिकरणदानेषु धातु से 'यज्ञ' शब्द बना है। इस शब्द का कोई भी अर्थ हिंसा का प्रतिपादन नहीं करता । वैदिक काल के 'यज्ञ' में किसी प्रकार की हिंसा नहीं होती थी। बल्कि पीछे यज्ञ में पशु-बलि देनेवाले के लिए आक्षेप रूप में ऐसा भी कहा जाता था कि यदि यज्ञ में मारा गया पशु सीधे स्वर्ग में जाता है, तो यजमान अपने पिता को मारकर स्वर्ग क्यों नहीं भेज देता।
उपनिषद्-काल में भी हिंसा का कोई स्थान नहीं था। महाभारत के पश्चात् समाज का अधः पतन होने लगा और अनेक प्रकार की विचारधाराएँ प्रवाहित होने लगी तथा कथित यज्ञों में पशु बलि की प्रथा प्रचलित हो गई। प्रतिक्रियास्वरूप बौद्ध, जैन तथा अन्य मत प्रकाश में आये। महावीर और बुद्ध के प्रतिद्वन्दी कई सम्प्रदाय-प्रवर्तक उस समय थे। किन्तु वे टिक नहीं सके।
यज्ञ में प्राणिहिंसा की बात किसी भी शास्त्र से अनुमोदित नहीं हो सकती। शास्त्रकारों ने तो “अध्वर इति यज्ञनाम-ध्वरति हिंसाकर्म तत्प्रतिषेधः” अध्वर यज्ञ का नाम है, जिसका अर्थ हिंसारहित कर्म है ।
ऋग्वेद के अग्निसूक्ति में कहा गया है: “अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि स इद् देवेषु गच्छति” । तथा उसी सूक्त में उल्लेख है कि 'राजन्तमध्वराणां, गोपामृतस्य दीदिवम् वर्धमानं स्वेदमे।
दो या अधिक अर्थोंवाले शब्दों को देखकर पूर्वापरप्रसंग, प्रकरण, वक्तव्य के बोलने के मन्तव्य आदि को भली भाँति समझ लेना चाहिए । ऐसे कतितपय शब्द मेधा, आलम्भन, संज्ञपन, बलि आदि हैं। उनमें से कुछ पर यहाँ विचार किये जाते हैं।
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