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आध्यात्मिक विशुद्धि का क्रम
क्रम- | उमास्वाति के अनुसार संख्या
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
८.
१०
११.
१२
१३.
१४.
परिषहों के
सन्दर्भ में
गुणस्थान- सिद्धान्त का उद्भव एवं विकास
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बादर सम्पराय
सूक्ष्मसम्पराय
छद्मस्थ
वीतराग
जिन
ध्यान के
सन्दर्भ में
अवतरित (सम्यक् दृष्टि)
देशविरत
प्रमत्तसंयत
अप्रमत्तसंयत
उपशान्त
कषाय
कर्मनिर्जरा के
सन्दर्भ में
सम्यक दृष्टि (दर्शन मोह उप
शमक)
श्रावक
विरत
अनन्तवियोजक
( उपशान्त
दर्शनमोह)
दर्शनमोहक्षपक
उपशमक
(चारित्रमोह)
क्षीणकषाय क्षीणमोह
(क्षीणमोह)
केवली (जिन) जिन
गुणस्थान- सिद्धान्त के अनुसार
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मिथ्यादृष्टि
सास्वादन
सम्यक् मिथ्यादृष्टि
सम्यक् दृष्टि (अवतरित
दृष्टि)
सूक्ष्मसम्पराय
उपशान्तमोहक्षपक उपशान्त मोह
देशविरत
सर्वविरत (प्रमत्तसंयत) अप्रमत्तसंयत
अपूर्वकरण (निवृत्ति
बादर सम्पराय
अनिवृत्तिकरण
175
क्षीणमोह
सयोगी केवली
अयोगी केवली
तत्त्वार्थसूत्र में आध्यात्मिक विकास का जो क्रम है, उसकी गुणस्थान - सिद्धान्त से इस अर्थ में भिन्नता है कि जहाँ गुणस्थान - सिद्धान्त में आठवें गुणस्थान से उपशम-श्रेणी
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