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आध्यात्मिक रूपक-काव्य और हिन्दी के जैनकवि
भैया भगवतीदास कृत ‘पंचेन्द्रिय-संवाद १० एक सुन्दर रूपक-काव्य है । इसमें कवि ने राग-द्वेष आदि विकारों की अभिव्यक्ति के लिए पंचेन्द्रिय-संवाद को अंकित किया है ।
भैया भगवतीदास-रचित 'मधुबिन्दुक चौपइ', 'सूआ बत्तीसी', 'शंतअष्टोत्तरी' आदि रचनाएँ रूपक-काव्य में परिगणित हैं ।
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'मनकरहारास " ब्रह्मदीप की रचना है। इसकी हस्तलिखित प्रति - सं. १७७१ की लिखी हुई है। इसमें कवि ने मन की उपमा ऊँट के बच्चे (करभ) से दी है तथा संसाररूपी वन में उगी विषय - वल्लरियों के चरने से उसे मना किया है। जैनकवियों द्वारा रचित अनेक रूपक-काव्य विभिन्न जैन ग्रन्थागारों के वेष्टनों में बँधे पड़े हैं । यह आश्चर्य का विषय है कि इतनी व्यापक सामग्री के होते हुए भी अभी तक इस विषय का प्रामाणिक एवं सर्वांगपूर्ण विवेचन सम्भव नहीं हो सका है। अतः आवश्यकता ऐसे सुधी अनुसन्धित्सुओं की है, जो इन असूर्यम्पश्या पोथियों को प्रकाश में लाकर इनका सही मूल्यांकन प्रस्तुत कर सकें ।
सन्दर्भ-स्रोत :
१. प्रकाशक : वीर पुस्तक भण्डार, मनिहारों का रास्ता, जयपुर, बी. नि. सं. २४८१ २- ५. संकलित : बनारसी विलास, प्रकाशक नाथूराम स्मारक ग्रन्थमाला, जयपुर
सं. २०१०
६.
प्रकाशक : हिन्दी जैन ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, बम्बई
७. आमेरशास्त्र भण्डार, जयपुर की हस्तलिखित प्रति
८. हस्तलिखित प्रति, आमेरशास्त्र भण्डार, जयपुर
९.
ब्रह्मविलास (प्रकाशक- जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई) में संकलित
१०.
वही
११. आमेरशास्त्र भण्डार, जयपुर की हस्तलिखित प्रति, गुटका नं. २९२.५४
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