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प्राकृत- अपभ्रंश छन्द: परम्परा एवं विकास
भरतमुनि ने 'छन्द' शब्द की परिभाषा दी है : नियताक्षरसम्बन्धे छन्दोयतिसमन्वितम् । निबद्धा तु पदं ज्ञेयं सतालपतनात्मकम् ।। (३२.२९)
नियत अक्षरों से युक्त, छन्दोयति से समन्वित और ताल के अवरोह से युक्त पद छन्द है । भावों का प्रकाशन तथा आह्लादन छन्द का मुख्य व्यापार है । अतः इसे लययुक्त आवश्यक होता है । इस दृष्टि से रुचिकर और लययुक्त वाणी ही छन्द है— छन्दयति आह्लादयति छन्द्यते अनेन इति छन्दः १
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छन्दः शास्त्र का उद्भव और विकास :
छन्दःशास्त्र उतना ही प्राचीन है, जितना वाङ्मय । यह कहना कठिन है कि छन्दोरचना का उद्भव कब, किस प्रकार और किसके द्वारा हुआ । भारतीय वाङ्मय में वेदों की प्राचीनता निःसन्दिग्ध है और कुछ लोगों ने छन्दःशास्त्र का आदिमूल वेद को ही माना है। वैदिक साहित्य में छन्दोबद्धता है और उसमें कुछ छन्दों के नाम भी उल्लिखित हैं, किन्तु छन्दः शास्त्र की दृष्टि से उनमें छन्दों की व्याख्या का कोई प्रयास नहीं दिखाई पड़ता । इतना अवश्य है कि गायत्री, उष्णिक्, शक्वरी आदि नामों का उल्लेख उनमें जिस रूप में हुआ है, उससे स्पष्ट प्रतिभासित हो जाता है कि छन्दों के लक्षण-निरूपण की प्रक्रिया का आरम्भ अवश्य हो गया होगा, अन्यथा लक्षण-निरूपण के अभाव में छन्द - विशेष का नामकरण किया जाना सामान्यतया सम्भव नहीं है । वेदों को 'छन्दस्' अभिप्राय-विशेष से ही कहा गया होगा । 'मुण्डकोपनिषद्' में छन्द को वेद की तरह ही 'अपरा विद्या' में परिगणित किया गया है:
तत्रापरा ऋग्वेदो यजुर्वेदः छन्दो ज्योतिषमिति ।।
ब्राह्मण-ग्रन्थों में वैदिक छन्दों पर विस्तारपूर्वक विचार किया गया है । श्रौतसूत्र, प्रातिशाख्य, सर्वानुक्रमणी, आरण्यक आदि में वैदिक छन्दों की विवेचना है । कात्यायन ऋग्वेद और यजुर्वेद की अनुक्रमणी में चौदह वैदिक छन्दों पर विचार किया है। शौनक ने ‘ऋग्वेद प्रातिशाख्य' में भी अनेक वैदिक छन्दों का विवेचन प्रस्तुत किया है । इतना होते हुए भी इन ग्रन्थों को छन्दःशास्त्र की संज्ञा नहीं दी जा सकती; क्योंकि इनमें अन्य अनेक विषयों के वर्णन के क्रम में प्रसंगानुकूल छन्दों का भी विवेचन हो गया है। ये छन्दः शास्त्र के स्वतन्त्र ग्रन्थ नहीं हैं ।
पाणिनि के गणपाठ में छन्दः शास्त्र - सम्बन्धी ग्रन्थों के नाम प्रतिलिखित हैं । स्वयं 'पिंगलसूत्र' में तण्डी, यास्क, क्रौष्टकि, सैतव, काश्यप, रात, माण्डव्य आदि आचार्यों के नाम आये हैं, किन्तु इनकी कोई भी रचना आज उपलब्ध नहीं है । अतः छन्दःशास्त्र के आदि प्रणेता के रूप में पिंगल का नाम ही सर्वोपरि है ।
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