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में कई संगोष्ठियों का आयोजन हुआ है। निकट अतीत में आपने उद्योग-विद्या, मानवीय मूल्य तथा भावी सामाजिक दशा पर गहन चिन्तन किया है। इसी विषय पर शोध करने हेतु हवाई विश्वविद्यालय (यू. एस. ए.) ने आपको अतिथि-अध्येता के रूप में आमन्त्रित किया था तथा तत्सम्बन्धी आपका महनीय शोधकार्य पुस्तक के रूप में प्रकाशनाधीन है। फिलाडेलफिया, न्यूयार्क, न्यूजीलैण्ड, युनाइटेड किंगडम, वेलिंगटन तथा होनोलूलू के विश्वविद्यालयों में आपके वैदुष्यपूर्ण व्याख्यान काफी चर्चित तथा प्रशंसित हुए हैं।
आप अखिलभारतीय दर्शन-परिषद् के मुख्य अध्यक्ष भी रहे हैं। मगध विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र - विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त होने के पश्चात् आप सम्प्रति पटना विश्वविद्यालय में अतिथि प्राध्यापक के रूप में सेवारत हैं ।
अपनी सारस्वत व्यस्तताओं तथा स्वास्थ्य- दौर्बल्यजनित विवशताओं के बावजूद प्रस्तुत राष्ट्रीय संगोष्ठी में विषय-प्रवर्त्तक अभिभाषण की स्वीकृति देकर आपने हमपर विशेष स्नेह एवं कृपा प्रदर्शित की है ।
प्रो. लाल के मुख्य अभिभाषण का विषय है— 'जैन विचारों की आधुनिक प्रासंगिकता' । यहाँ मैं विशेष रूप से यह उल्लेख कर देना समीचीन समझता हूँ कि संस्थापकों की दृष्टि में इस संस्थान की स्थापना का प्रमुख लक्ष्य केवल प्राकृत और जैनशास्त्र के क्षेत्र में शोध, अध्ययन, अध्यापन आदि को ही विकसित एवं प्रोत्साहित करना नहीं था, बल्कि उच्चतम विचारों से सामान्य ग्रामीण जनजीवन को जोड़ना तथा उनमें रचनात्मक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास की चेतना का उद्बोधन करना भी था । तदनुरूप पुण्यश्लोक जगदीशचन्द्र माथुर ने संस्थान द्वारा लोकबोध व्याख्यानमाला के संचालन की योजना बनाई थी तथा कल्पना की थी कि इसके सफल कार्यान्वयन से प्राकृत और जैनशास्त्र के लोकप्रिय आयाम सामान्य जनता तक पहुँच सकेंगे तथा इससे उनके व्यावहारिक जीवन में प्रगतिपरक प्रवृत्ति का अभ्युदय होगा। प्रोफेसर लाल का प्रस्तावित अभिभाषण, मुझे पूर्ण विश्वास है, इस चिराकांक्षित सारस्वत योजना के कार्यान्वयन का मूलाधार प्रस्तुत करेगा ।
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