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महावीर और बुद्ध के जीवन और उनकी चिन्तन-दृष्टि
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उल्लेखनीय है कि पश्चिमी भाग के आर्यों ने जहाँ भोगमूलक संस्कृति पर बल दिया, वहाँ पूर्वी भारत के चिन्तन के आधार अहिंसा और त्याग मुख्य रूप से थे। जैनधर्म एवं बौद्धधर्म के प्रवर्तक दोनों ही पूर्वी भारत के थे। यही नहीं, बुद्ध और महावीर के अवतरण से पूर्व वैदिक यज्ञों में बलि की प्रथा प्रचलित थी। पूरी समाज-व्यवस्था शोषक और शोषितों के बीच विकसित हो रही थी। पशुओं की बलि से कृषि का विकास और वाणिज्य-व्यवसाय बाधित था। परवर्ती वैदिक सभ्यता का सूत्र समाज के सर्वोच्च वर्ण ब्राह्मणों के हाथों में था, जबकि उस ब्रह्मण्य-संस्कृति का विरोध उपनिषद्-कालीन चिन्तक ऋषियों ने किया। कठोपनिषद् में यम और नाचिकेता के संवाद इस मर्म का उद्घाटन करते हैं कि जीवन के स्थूल भोगों का सुख, वह स्वर्ग में हो या पृथ्वीलोक में, मनुष्य-जीवन का प्राप्तव्य लक्ष्य नहीं है। मानव-जीवन का लक्ष्य श्रेष्ठतर है, सत्य, अमृत और अविनश्वरता की दृष्टि का चरम विकास। महावीर वर्द्धमान और गौतमबुद्ध ने इसी जीवनव्यापी दृष्टि का उन्मेष किया। धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था की रूढ़ियों को चुनौती दी। धर्म और समाज की नई दृष्टि का प्रवर्तन किया।
यह इतिहास का विलक्षण संयोग है कि गौतम बुद्ध और महावीर वर्द्धमान समकालीन थे, उनके जीवन और परिस्थितियों में समानता है और चिन्तन के सूत्रों में भी समानता के अनेक प्रोज्ज्वल बिन्दु हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि ये दोनों महापुरुष अपने चिन्तन और जीवन की घटनाओं के सन्दर्भ में एक दूसरे से जुड़े, एक दूसरे के प्रतिरूप हैं। नहीं, कई बातों और कई चिन्तन-सूत्रों के सन्दर्भ में दोनों एक दूसरे से एकदम पृथक और मौलिक रूप से स्वतन्त्र हैं। दोनों धर्मों के विशाल साहित्य के अनुशीलन से यह तथ्य बहुत स्पष्ट रूप से प्रतिभासित होता है। दोनों के पूर्वी भारत में मुख्यरूप से 'धम्म' का प्रचार, एक ही क्षेत्र में धर्मोपदेश करने के बावजूद (वैशाली, नालन्दा आदि) उनके शिष्य एक दूसरे से तो मिलते हैं. प्रभावित होते हैं, पर स्वयं बुद्ध
और महावीर समानान्तर रेखा की भाँति कभी एक दूसरे से मिल नहीं सके। इस सन्दर्भ में अगले कुछ पृष्ठों में महापुरुषों के जीवन और उनकी चिन्तन-दृष्टि के साम्य और वैषम्यमूलक बिंदुओं पर प्रमुख रूप से प्रकाश-निक्षेप किया जा रहा है। जन्मकथा : __ वर्द्धमान महावीर और गौतम बुद्ध के जन्म को लेकर अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। बुद्ध और महावीर की माताओं ने उनके जन्म के सन्दर्भ में स्वप्न देखे। सिद्धार्थ (बुद्ध) की माता महामाया ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन स्वप्न देखा कि बोधिसत्त्व श्वेत हाथी के रूप में उनकी कोख में प्रवेश कर गया। इसी प्रकार महावीर की माता त्रिशला ने स्वप्न में चौदह शुभ शकुनों को देखा। उनमें पहला तो 'हाथी' ही है, अन्य स्वप्नों में बैल,
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