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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में वर्णित तीर्थंकर
रूप में भी दौड़ में भाग लिया, पर पराजित हआ और नियमानुसार महावीर देवता पर आरूढ़ हुए। दृश्य में महावीर एक बालक की पीठ पर बैठे हैं। नीचे 'वीर' अंकित है। समीप ही एक वृक्ष के पास महावीर खड़े हैं और सर्प को हटा रहे हैं। नीचे 'वीर' लिखा है।
तीसरे आयत में पूर्व की ओर महावीर को केशलुंचन तथा इन्द्र द्वारा उनके केशों के संचय का अंकन है। आगे तपस्यारत महावीर की चार आकृतियाँ बनी हैं, जिनके शीर्षभाग में चक्र बना है और उनके जानु के नीचे का भाग नहीं दिखाया गया है। यह संगमदेव द्वारा महावीर पर कालचक्र (१८वाँ उपसर्ग) चलाये जाने का अंकन है, जिसके प्रभाव से महावीर का आधा शरीर भूमिगत हो गया था। बायें कोने पर संगमदेव को क्षमा माँगते दिखाया गया है। दक्षिण की ओर चन्दनबाला की कथा भी उत्कीर्ण है।३६
इस प्रकार स्पष्ट है कि कुम्भारिया के जैन मन्दिरों के वितानों पर तीर्थंकरों के जीवन-दृश्यों के उत्कीर्णन में हेमचन्द्र की त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के विवरणों का पूरा उपयोग किया गया है जो इस कथापरक जैनग्रन्थ के तत्कालीन महत्व को उजागर करते
हैं।
सन्दर्भ-स्रोत : १. त्रि.श.पु.च. (त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित) जैन आत्मानन्द प्रसारक सभा, भावनगर,
१९०५-०९, अंग्रेजी अनुवाद, हेलेन. एम. जानसन, गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज, ६ : खण्डों में, क्रमशः १९३१, ३७, ४९, ५४, ६२, ६२, १०, प्रशस्ति,
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२. तिवारी एम. एन. पी. “लाइफ्स आफ दि जिन्स ऐज डेपिक्टेड इन कुम्भारिया जैन
टेम्पुल्स" प्राचीप्रभा बी. एन. मुखर्जी अभिनन्दन-ग्रन्थ (सं. डी. सी. भट्टाचार्य
आदि) दिल्ली १९८९, पृ. २६२-७१ ३. त्रि.श.पु.च. १.२.२२८-३५ ४. वही, १.२.६३५-९११ ५. वही, १.२.९२४-८४, तिवारी, एम. एन. पी. पू.नि. पृ. ३६३ ६. त्रि.श.पु.च. १.२.६०-७०
७. वही, १.३. १३४-४४ ८. वही, १.३.४२१-७७
९. वही, १.२. २०७-१२ १०. वही, १.२. २७३-३३० ११. वही, १.२. ३३०-६४६ १२. वही, ५.४. २५३-९० १३. वही, ५.४. ३४५-५७ १४. तिवारी, एम. एन. पी. पू.नि. ३६७
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