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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में वर्णित तीर्थंकर
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झुकाकर शक्ति-परीक्षण का आग्रह किया। कृष्ण नेमिनाथ की भुजा किंचित् मात्र भी न झुका सके जबकि नेमिनाथ अत्यन्त सहजभाव से उनकी भुजा झुकाने में सफल हुए।
दृश्य में कृष्ण की आयुधशाला में शंख, गदा, चक्र, खड्ग जैसे आयुध प्रदर्शित हैं। समीप ही नेमिनाथ को कृष्ण का पांचजन्य शंख बजाते हुए दिखाया गया है तथा नीचे 'श्रीनेमि' लिखा है। आयुधशाला के समीप वसुदेव तथा देवकी की आकृतियाँ हैं। दक्षिण की ओर नेमिनाथ के विवाहमण्डप का अंकन है, जिसमें राजीमती को सखी के साथ दिखाया गया है। नीचे उत्कीर्ण लेख में क्रमशः 'राजीमती' और 'सखी' लिखा है। आगे के दृश्य में पिंजरे में बन्द शूकर, मृग, मेष, जैसे पशु प्रदर्शित हैं। साथ ही दो रथ भी उत्कीर्ण हैं जिनमें से एक विवाहमण्डप की ओर जाते हुए तथा दूसरा विवाहमण्डप की विपरीत दिशा में आते हुए दिखाया गया है। दोनों रथों में नेमिनाथ बैठे हैं। विवाहमण्डप के विपरीत दिशा की ओर आता हुआ रथ नेमिनाथ के बिना विवाह किये मार्ग से ही वापस जाने और दीक्षा लेने का शिल्पांकन है जो त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के विवरण के अनुरूप है। इस ग्रन्थ में उल्लेख है कि नेमिनाथ ने विवाह के लिए जाते समय मार्ग में कुछ पशुओं को पिंजरे में बन्द देखा। विवाह में भोजन के निमित्त उन बन्दी पशुओं के वध के बारे में जानकर नेमिनाथ अत्यन्त दुखी हुए। उन्होंने विवाहस्थान तक गये बिना मार्ग से ही लौटकर दीक्षा ग्रहण कर ली।८ उत्तर की ओर नेमिनाथ की दीक्षा एवं तपस्या से सम्बन्धित आकृतियाँ हैं।
शान्तिनाथ एवं महावीर-मन्दिर की भ्रमिका के वितानों पर जैन परम्परा के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के जीवनदृश्यों का भी उत्कीर्णन मिलता है।
महावीर-मन्दिर की पश्चिमी भ्रमिका के छठे वितान पर पार्श्वनाथ के पंचकल्याणकों के अतिरिक्त उनके पूर्वभवों तथा तपस्या के समय उपस्थित विभिन्न उपसर्गों का अंकन है। पूर्वभवों के अंकन में मरुभूति (पार्श्वनाथ का पहला पूर्वभव) तथा कमठ (मेघमालिन् का पहला पूर्वभव) के जीवों के विभिन्न भवों में हुए संघर्षों को भी विस्तारपूर्वक दिखाया गया है, जो पूर्णतः त्रिपष्टिशलाकापुरुषचरित से निर्दिष्ट है।
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख है कि पोतनपुर नामक नगर के शासक अरविन्द ने अपने शासन के अन्तिम वर्षों में दीक्षा ग्रहण की थी। अरविन्द के राज्य में विश्वभूति नामक एक ब्राह्मण पुरोहित निवास करता था जिसके मरुभूति एवं कमठ नामक दो पुत्र थे। मरुभूति के मन में सांसारिक वस्तुओं के प्रति कोई मोह नहीं था जबकि कमठ सदैव उनके प्रति आसक्त रहता था। कमठ ने मरुभूति के साधु स्वभाव का लाभ उठाकर उसकी पत्नी वसुन्धरा के साथ अनैतिक सम्बन्ध स्थापित कर लिया। मरुभूति की शिकायत के फलस्वरूप राजा अरविन्द ने कमठ को दण्डित किया। कमठ अत्यन्त लज्जित होकर
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