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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
है। सिद्धान्त ही नहीं अपितु आधुनिक प्रयोग भी इनका आधार है। तथ्य यह है कि कुछ प्रयोग पदार्थ का कण रूप स्वीकार करते हैं व तरंग रूप नकारते हैं तो कुछ प्रयोग उसी पदार्थ का तरंग रूप स्वीकारते हैं व कण रूप नकारते हैं। इस शताब्दी के दूसरे एवं तीसरे दशक में वैज्ञानिकों के सामने यह विकट समस्या थी कि प्रकाश का कण रूप स्वीकारें या तरंग रूप स्वीकारें या इसी प्रकार इलेक्ट्रान का कण रूप स्वीकारा जाये या तरंग रूपा क्वाण्टम सिद्धान्त या क्वाण्टम यांत्रिकी ने इस समस्या को एक नवीन एवं अद्भुत तरीके से हल किया जिसे स्याद्वाद का एक रूप भी कहा जा सकता है। क्वाण्टम सिद्धान्त इलेक्ट्रान के कण-कण को स्वीकारता भी है व नकारता भी है व इसी प्रकार तरंग रूप को भी स्वीकारता भी है व नकारता भी है। साथ ही क्वाण्टम सिद्धान्त यह भी कहता है कि इलेक्ट्रान का कण एवं तरंग का मिला-जुला रूप ऐसा है जो वर्णनातीत है। स्याद्वाद की भाषा में इलेक्ट्रान के बारे में निम्नांकित कथन क्वाण्टम सिद्धान्त स्वीकार करता है -
१. कथंचित् (किसी अपेक्षा से) इलेक्ट्रान कण है। २. कथंचित् (किसी अपेक्षा से) इलेक्ट्रान कण नहीं हैं। ३. कथंचित् (किसी अपेक्षा से) इलेक्ट्रान कण है भी व कण नहीं भी है। ४. कथंचित् (किसी अपेक्षा से) इलेक्ट्रान का स्वरूप अवक्तव्य (अवर्णनीय) है। ५. इलेक्ट्रान का कण रूप कथंचित् अवक्तव्य है। ६. यह कथंचित् अवक्तव्य है कि इलेक्ट्रान कण रूप नहीं है। ७. इलेक्ट्रान कण रूप है या कण रूप नहीं है यह कथंचित् अवक्तव्य है।
स्याद्वाद का शाब्दिक अर्थ होता है ऐसा वाद (कथन) जिसमें 'स्याद्' या 'स्यात्' अर्थात् कथंचित् यानी किसी अपेक्षा से' विशेषण का सद्भाव है। जब वक्ता एवं श्रोता या लेखक एवं पाठक के बीच पूर्ण सन्दर्भ या धारणा स्पष्ट हो तो यह आवश्यक नहीं है कि वाणी या लेखनी में 'स्यात्' शब्द का प्रयोग हो। ऐसी स्थिति में 'स्यात्' शब्द का उपयोग गौण हो जाता है किन्तु अभिप्राय में कायम रहता है। कालबेल की आवाज सुनकर दरवाजा खोलने पर बच्चा जब अपने मामा को देखता है तो माँ से यही कहता है कि 'मामा आये हैं। इस कथन में यह गौण है कि 'मेरे मामा' यानी 'मम्मी के भाई' आये हैं। इसी प्रकार भौतिकी विज्ञान में भी इलेक्ट्रान को जब कण कहा जाता है तब बिना कहे ही मान लिया जाता है कि इलेक्ट्रान यद्यपि कणरूप नहीं भी है किन्तु इस समय इलेक्ट्रान के कणरूप की प्रमुखता से कथन हो रहा है। यह बात अलग है कि जैसे दूल्हे के मामाजी दूल्हे के मित्रों के भी मामाजी कहलातेकहलाते सभी बारातियों के मामाजी कहलाने लगते हैं व ऐसी स्थिति भी बनने लगती है कि वह व्यक्ति जो कि दुल्हे का मामा है, सभी का मामा बन जाता है। इसी प्रकार
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