________________
428
Multi-dimensional Application of Anekantavāda
अनेकान्तवाद समन्वय का प्रयोजक और सहअस्तित्व तथा सहिष्णुता का दृढ़तम आधार है। अपने अस्तित्व को अन्य में विलीन कर देना या दूसरे किसी का अनुकरण करना 'समन्वय का अर्थ नहीं है। विभिन्न अस्तित्व, आकार और विचारों के परिवेश में जो भावात्मक एकता, समरसता और सामंजस्य है, उसी को समन्वय कहते है। जिसप्रकार दिग्भ्रमित व्यक्ति दिशासूचक यंत्र की सहायता से गन्तव्य दिशा में जा सकता है, उसी प्रकार समन्वय का आधार लेकर हमारे जीवन में पैदा होने वाली कठिनाइयों का सामना किया जा सकता है, समाधान ढूंढे जा सकते हैं। विभिन्नताओं के रहते हुए भी व्यक्ति परस्पर सामंजस्य रखकर बड़े प्रेम से सामाजिकता का निर्वाह कर सकता है। परस्पर समन्वय की भावना से शान्ति और फलस्वरूप एकता-स्नेह में वृद्धि हो सकती है। जीवनतत्त्व अपने में पूर्ण होते हुए भी कई अंशों की अखण्ड समष्टि है। इसी लिए समष्टि को समझने के लिए अंशों का समझना आवश्यक है। यदि हम अंश की उपेक्षा करेंगे तो अंशी (संपूर्णता) को उसके सर्वांग रूप में नहीं समझ सकेंगे।
इस अनेकान्तवादी विचारधारा में एक-दो आयाम न होकर बहुआयामी दृष्टिबिन्दु (Multi dimensional point of view) होते हैं। इसलिए आज के युग में यह सभी को स्वीकार हो सका है। साक्रेटीस (सुकरात) भी किसी पदार्थ या कथन को एक नजरिये से न पहचानने पर जोर देते थे। उस समय यह दृष्टिकोण नूतन लगता था। लेकिन जैनदर्शन में यह सिद्धान्त बहुत प्राचीन काल से है। व्यापक प्रचार-प्रसार न होने से यह धार्मिक-दार्शनिक क्षेत्र में ही विशेष प्रचलित था। लेकिन आज के मनोवैज्ञानिक व्यक्तिपरक-युग में सभी क्षेत्रों में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो सकता है, वरना केवल सिद्धान्त बन कर जनमानस से अलिप्त रहेगा।
जैन दर्शन का विश्व को देखने और उसकी व्याख्या करने का दृष्टिकोण दूसरा रहा। उसने अनेकान्त दृष्टि से विश्व को देखा और स्याद्वाद की भाषा में उसकी व्याख्या की इसलिए वह न अद्वैतवादी बना, न द्वैतवादी। उसकी विचार धारा स्वतंत्र रही। अनेकांत दृष्टि अनंत नयों की समष्टि है। उसके अनुसार कोई भी एक नय पूर्ण सत्य नहीं है और कोई भी नय असत्य नहीं है। सभी सापेक्ष होकर सत्य होते हैं और निरपेक्ष हो असत्य होते हैं। अनेकान्त की मर्यादा में होनेवाला उदार दृष्टिकोण और विशाल मानस आज के युग में नहीं दिखाई देता। व्यवहार के स्तर पर इसका उपयोग बहुत कम होता है।
इसलिए अनेकान्तवाद के विषय में सैद्धान्तिक चर्चा करने के बाद हमारे व्यावहारिक जीवन में यह दृष्टिकोण कैसे सहायक हो सकता है या इसे हम कैसे उपयोग में लाकर जीवन के विविध क्षेत्र में विकास कर सकते हैं, इस पर थोड़ा दृष्टिपात करना अनुचित नहीं होगा। हम पाते हैं कि व्यवहार के स्तर पर इसे लोकप्रिय स्वरूप प्राप्त नहीं हुआ है। जितना उपयोग दर्शन के क्षेत्र में हुआ है, उसका दशांश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org