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________________ 416 Multi-dimensional Application of Anekāntavāda ७. अनुशासन में सहायता ८. पाठ्यनिर्माण में सहायता मेक्डूगल ने १४ मूलप्रवृतियां मानी हैं। मरसेल का मत है कि मूल प्रवृत्तियों की संख्या अपरिमित और अनिश्चित है । बर्नाड ने १४० विभिन्न मूलप्रवृत्तियों का पता लगाया है। इन मूल प्रवृत्तियों का विश्लेषण जैनधर्म के कर्मसिद्धान्त से किया जा सकता है। कर्म व्यक्ति के संवेगों को भी प्रभावित करते हैं। अतः संवेगों का भी अध्ययन आवश्यक है। शिक्षक बालकों के संवेगों को परिष्कृत कर उनको समाज के अनुकूल व्यवहार करने की क्षमता प्रदान कर सकता है। इसके फलस्वरूप उनमें कला, साहित्य और अन्य सुन्दर वस्तुओं के प्रति प्रेम अथवा वैराग्य उत्पन्न हो सकता है। व्यक्ति के जीवन में सुझावों का भी महत्त्व होता है । उदाहरणार्थ- भाव चालक सुझाव हमारे अचेतन मस्तिष्क में जन्म लेता है और हमें प्रभावित करता है । उदाहरणार्थनृत्य देखते समय हमारे पैर अपने आप थिरकने लगते हैं। प्रतिष्ठा सुझाव का आधार व्यक्ति की प्रतिष्ठा होती है। उदाहरणार्थ- जवाहरलाल नेहरू के सुझावों का देश के कोने-कोने में स्वागत किया जाता था। व्यक्ति स्वयं को भी सुझाव देता है। जैसे यदि रोगी अपने को यह सुझाव देता रहता है कि वह अच्छा हो रहा है तो वह शीघ्र अच्छा हो जाता है। हड़ताल के समय छात्र सामूहिक सुझाव के कारण अनुशासनहीनता के कार्य करने लगते हैं। इस प्रकार सुझाव नाना प्रकार से सहायता करता है, जैसे - १. नये विचार प्रदान करने में सहायता २. साहित्य शिक्षण में सहायता ५. ३. विभिन्न विषयों के शिक्षण में सहायता ४. वातावरण निर्माण में सहायता रुचियों के विकास में सहायता ६. मानसिक विकास में सहायता ७. चरित्र निर्माण में सहायता ८. व्यक्ति निर्माण में सहायता ९. अनुशासन में सहायता १०. गुरु शिष्य सम्बन्ध में सहायता सामाजिक सुझाव की एक जाति अनुकरण है। जैसे - एक बच्चे को पढ़ते हुए देखकर दूसरे का पढ़ना, बड़े को सिगरेट पीते हुए देखकर छोटे बच्चे का सिगरेट पीना। अनुकरण का शिक्षा में महत्त्व इस प्रकार है १. कुशलता की प्राप्ति २. नैतिकता की शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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