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________________ अनेकान्तवाद : एक दार्शनिक विश्लेषण 397 जाने पर सुवर्णघट के चाहने वाले पुरुष को शोक होता है। शोक का कारण है, वस्तु का नाश। तोड़े गए घट के सुवर्ण का मुकुट बन जाने पर मुकुट के चाहने वाले पुरुष को हर्ष होता है। हर्ष का कारण है - वस्तु का उत्पाद। केवल सुवर्ण के चाहने वाले पुरुष को घट के नष्ट हो जाने पर न तो शोक होता है और न मुकुट के उत्पन्न होने पर हर्ष होता है, वह तो दोनों अवस्थाओं में मध्यस्थ रहता है। मध्यस्थ रहने का कारण है वस्तु का ध्रौव्यत्व। यदि उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य पृथक्-पृथक् न होते तो सोना एक पुरुष को शोक का कारण, दूसरे पुरुष को हर्ष का कारण और तीसरे पुरुष को माध्यस्थ भाव का कारण कैसे होता? हर्ष, विषाद आदि निर्हेतुक नहीं हो सकते हैं, उनका कोई न कोई हेतु तो होना ही चाहिए। अत: घट पर्याय का विनाश शोक का हेतु है, मुकुट पर्याय की उत्पत्ति हर्ष का हेतु है और सुवर्ण द्रव्य का ध्रौव्यत्व माध्यस्थ भाव का हेतु है। जो स्वर्ण मात्र को चाहता है, उसको घट के टूटने और मकट के उत्पन्न होने से कोई प्रयोजन नहीं है। घट के बने रहने पर उसका काम चल सकता है, मुकुट के बने रहने पर उसका काम चल सकता है, और घट के टूट जाने के बाद मुकुट के बन जाने पर भी उसका काम चल सकता है। इस प्रकार वस्तु में निर्बाध रूप से उत्पाद, व्यय आदि तीन की प्रतीति होती है और वह प्रतीति वस्तु को उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप सिद्ध करती है। आचार्य समन्तभद्र ने तत्त्व की त्रयात्मकता सिद्ध करने हेतु एक दूसरा उदाहरण भी दिया है। वे कहते हैं - जिसको दुध खाने का व्रत है, वह दही नहीं खाता है, जिसको दही खाने का व्रत है, वह दूध नहीं खाता है और जिसको गोरस नहीं खाने का व्रत है, वह दोनों नहीं खाता है। इसलिए तत्त्व तीन रूप है२२। वस्तु की त्रयात्मकता का अनन्तात्मकता से कोई विरोध नहीं है वस्तु के वयात्मक होने पर भी अनन्तात्मक होने में कोई विरोध नहीं है। उत्पाद आदि तीन धर्मों में से प्रत्येक धर्म भी अनन्त रूप है। एक वस्तु का उत्पाद उत्पन्न होने वाली अनन्त वस्तुओं के उत्पाद से भिन्न होने के कारण अनन्त रूप है। एक वस्तु का विनाश होनेवाली अनन्त वस्तुओं के नाश से भिन्न होने के कारण अनन्त रूप है तथा एक वस्तु का ध्रौव्यत्व अनन्त वस्तुओं के ध्रौव्यत्व से भिन्न होने के कारण अनन्त रूप है। अनन्तधर्मात्मकता का उत्पाद-व्यय ध्रौव्यात्मकता से अविनाभाव ___ समस्त वस्तुयें अनन्तधर्म वाली हैं; क्योंकि उनमें उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य पाए जाते हैं। जो अनन्तधर्म वाले नहीं हैं, उनमें उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य भी नहीं पाए जाते, जैसे कि आकाश-कमल में। यह केवलव्यतिरेकी अनुमान वस्तु को निर्विवाद रूप से अनन्तधर्म वाली सिद्ध कर देता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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