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अनेकान्तवाद : एक दार्शनिक विश्लेषण
एकत्व और अनेकत्वभाव परस्पर सापेक्ष हैं लघुतत्त्वस्फोट में कहा गया है
एको भावस्तावक एष प्रतिभाति व्यक्तानेकव्यक्तिमहिम्न्येकनिषण्णः । यो नानेकव्यक्तिषु निष्णातमतिः स्यादेकोभावस्तस्य तवैषो विषयः स्यात् ॥ १८/२ हे भगवन् ! आपका यह एक भाव प्रकट हुई अनेक पर्यायों की महिमा में एक पर निर्भर अर्थात् सामान्यग्राही होने से अनेकों में एकत्व को स्थापित करने वाला प्रतिभासित होता है। जो पुरुष अनेक पदार्थों में निपुणमति है - पदार्थों के अनेकत्व को स्वीकृत करता है, उसी का एक भाव है- एकत्व का अनेकत्व के साथ अविनाभाव स्वीकृत होना और यही एकानेकात्मक भाव आपका ज्ञेय है।
यहाँ एक और अनेक दो विरोधी धर्मों की चर्चा करते हुए कहा गया है कि हे भगवन् ! आपका यह एक भाव अनेक पदार्थों में व्यापक रहने से उनके साथ अविनाभावी है और अनेक, एक के साथ अविनाभावी है। यह एकानेकात्मक भाव आपका ज्ञेय है आपके ज्ञान का विषय है, तात्पर्य यह है कि यह एकत्व और अनेकत्वभाव परस्पर सापेक्ष हैं, अतः पदार्थ के एकत्व को वही ग्रहण कर सकता है, जो अनेकत्व को ग्रहण करने में कुशल है और अनेकत्व को भी वही ग्रहण कर सकता है, जो एकत्व को ग्रहण करने में निपुण है १४ ।
कारण कार्य के विषय में अनेकान्त
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आचार्य अमृतचन्द्र ने कहा है
जातं जातं कारणभावेन गृहीत्वा जन्यं जन्यं कार्यतया स्वं परिणामम् । सर्वेऽपि त्वं कारणमेवास्यसि कार्यं शुद्धो भावः कारणकार्याविषयोऽपि ॥ लघुतत्त्वस्फोट १८ / १७
कार्य रूप से उत्पन्न हुआ, उत्पन्न होने वाला प्रत्येक पदार्थ कारण रूप से अपने ही परिणाम को ग्रहण कर उत्पन्न हुआ है, अतः आप सम्पूर्ण रूप से कारण ही हैं और कार्य ही हैं, जब कि शुद्धभाव कारण और कार्य का विषय नहीं है ।
शुद्ध द्रव्यार्थिक नय से न कोई उत्पन्न होता है और न कोई विनाश को प्राप्त होता है, इसलिए उसमें कारण- कार्यभाव की चर्चा नहीं है। इसी अभिप्राय से यहाँ कहा गया है कि शुद्धभाव कारण कार्य का विषय नहीं है, परन्तु पर्यायार्थिक नय से पदार्थ उत्पन्न होता है और विनाश को प्राप्त होता है, अतः उसमें कारण कार्यभाव की चर्चा आती है। जो पदार्थ उत्पन्न होता है, वह कार्य कहलाता है और उसमें जो निमित्त पड़ता है, वह कारण कहलाता है। यहाँ कारण के लिए उपादान की दृष्टि से कर्ता भी कहा जाता है। परमार्थ से जो परिणमन करता है, वह कर्ता कहलाता है और जो परिणमन है, वह कर्म कहलाता है 'यः परिणमति स कर्ता यः परिणामो भवेत्तु तत्कर्म' ऐसा
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