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Multi-dimensional Application of Anckäntavāda
नमो
धाताऽसि धीर ! शिवमार्ग विधेर्विधानाद । व्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ।।भक्तामर स्तोत्र -२५
अर्थात् बुद्ध तुम्ही हो बुद्धिबोध से देवार्चित प्रभु। तुम शंकर हो तीन लोक के शांति प्रदाता। धीर ब्रह्म इसलिए कि तुमने मुक्तिपंथ का किया प्रवर्तन। पुरुषोत्तम तुम प्रभो उजागर सारे जग में।
__उपर्युक्त कथन के अनुसार बुद्ध शंकर, विधाता (ब्रह्मा) सब एक ही भगवान के नाम हैं। यह एक नितांत उदार एवं उदात्त धारणा का प्रतीक है। जैनधर्म का नमस्कार महामन्त्र जैन धर्म की धार्मिक सहिष्णुता का ज्वलन्त प्रतीक है जिसमें संसार के सभी साधुओं (भद्र पुरुषों) को नमस्कार किया गया है
अरहंताणं नमो सिद्धाणं नमो
आयरियाणं
उवज्झायाणं नमो लोए सव्व साहूणं। धार्मिक सहिष्णुता किसी एकान्तवादी धर्म या व्यक्ति में नहीं हो सकती। अत: धर्म को उसके व्यापक अर्थ में जानने और जीवन में प्रयोग करने के लिए अनेकान्तवाद की महती उपयोगिता है। जैन धर्म का व्यापक दृष्टिकोण तो विश्वबन्धुत्व व प्राणिमात्र के कल्याण की ही अभिव्यक्ति करता है यथा
सत्येषु मैत्री गुणिषु प्रमोदम् । क्लिष्टेषु जीवेषु कृपा परत्वम् ।। माध्यस्थ भावं विपरीत वृत्तौ ।
सदा ममात्मा विदधातु देव ।।
सारे विश्व के सभी जीवों में मैत्री हो, गुणवान लोगों में प्रमोद व आनंद, कष्टपीड़ितों पर कृपापरत्व या दया व सहानुभूति, विपरीत (विरुद्ध) आचार वाले लोगों के प्रति माध्यस्थ या तटस्थ भाव -जैसी भावनाएँ हमारे मन में सदैव कार्यरत रहें।
नमो
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