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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
मध्यस्थता करके, दोनों के बीच में संतुलन व सामंजस्य की दशा को पैदा करने में अनेकान्तवाद एक अहं भूमिका निभा सकता है। साहित्य के क्षेत्र में अनेकान्तवादः
'साहित्यस्य भावः साहित्यम्। भारतीय साहित्य विविधताओं से भरा है। किसी भी साहित्य की सफलता उसकी मार्मिकता अर्थात् पाठक पर पड़ने वाली प्रभावशीलता पर होती है। हमारे भारतीय लेखक इस मार्मिकता की योजना को अनेकों रूपों योजित करते हैं।
साहित्य में विभिन्न जीवन-दृष्टियों का समावेश होता है। तब तक साहित्य श्रेष्ठ साहित्य नहीं कहला सकता जब तक उसमें अनुचिन्तन एवं कल्पना की योजना सुचारु रूप में नहीं की गई हो। दूसरे शब्दों में उन्हें क्रमश: सत्यं, शिवं एवं सुन्दरम्नाम से पुकारा जाता है। किसी भी साहित्यक-रचना में प्रभाव तथा सौन्दर्य लाने के लिए इन तीनों तत्त्वों का समावेश होना चाहिए।
साहित्य की सफलता के लिए अनेक आदर्शों की आवश्यकता है। परंतु ये अनेकों आदर्श परस्पर भिन्न दीख पड़ने पर भी परस्पर पूरक हैं, इसी को कहते हैं"अनेकता में एकता।"
भावनात्मक सौंदर्य, कलात्मक सौंदर्य तथा विचारात्मक सौंदर्य-तीनों परस्पर अन्तर्गभित हैं और एक दूसरे के लिए पूरक का कार्य करते हैं। जब साहित्य के सृजन में इन तीनों को समन्वित रूप में उपस्थित किया जाता है तभी उसमें वास्तविक प्रभाव का संचार होता है। अत: अनेकता होते हुए भी उनमें सामंजस्य लाने में अनेकान्तवाद का प्रयोग यदि किया जाय तो साहित्य अपने वास्तवकि रूप में प्रतिष्ठित हो सकेगा। अनेकान्तवाद रोग निदान एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में
___ एक सुप्रसिद्ध कहावत स्वास्थ्य के महत्त्व को बताने वाली इस जग में प्रचलित है- “आरोग्य ही महाभाग्य है।"
मानव जन्म सारे ब्रह्माण्ड में श्रेष्ठ माना जाता है, परन्तु यह मानव शरीर जो अनेकों साधनाओं को निभाने के लिए इस विश्व में एक उपकरण है- दुर्बल या प्रबल हो सकता है। जिस प्रकार का अन्न-पान देकर उसका पोषण करते हैं यह वैसा ही हो जाता है। उपनिषदों में आत्मा के पंचकोशों में एक कोश अन्नमय कोश भी है। तात्पर्य यह कि मानव शरीर की स्वस्थता उसके द्वारा ग्रहीत भोजन पर सर्वथा निर्भर है स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है, और स्वस्थ वही है जो निरोग है। भारत में रोग निदान की अनेक पद्धतियाँ विकसित हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं
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