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Multi-dimensional Application of Anekantavāda
स्वतन्त्र रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता है। वह तो प्रथम अस्ति, द्वितीय नास्ति और तृतीय क्रमभावी अस्ति-नास्ति के रूप में उपस्थित ही है।
दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार 'स्यात्' पद अचर है। उसके अर्थ अर्थात् भाव में कभी भी परिवर्तन नहीं होता है। वह प्रत्येक भंग के साथ एक ही अर्थ में प्रस्तुत है। इस प्रकार इस दृष्टिकोण को मानने से नास्ति भंग में द्विधा निषेध आता है, जिसका निम्न प्रकार से प्रतीकी करण किया जा सकता है
(१) स्यादस्ति = P (A) (२) स्यान्नास्ति = P~ (~A)
अब इसका यह प्रतीकात्मक रूप निम्नलिखित दृष्टान्त से पूर्णतः स्पष्ट हो जायेगा - - 'स्यात् आत्मा चेतन है (प्रथम भंग) और 'स्यात- आत्मा चेतन नहीं है' (द्वितीय भंग) अब यदि हम ‘आत्मा चेतन है' का प्रतीक A मानें, तो उसके अचेतनता का प्रतीक ~A होगा और इसी प्रकार 'आत्मा अचेतन नहीं है' का प्रतीक ~ (~A) हो जायेगा इस प्रकार इन वाक्यों में हमने देखा कि वक्ता की अपेक्षा बदलती नहीं है। वह दोनों ही वाक्यों की विवेचना एक ही अपेक्षा से करता है। इस दृष्टि कोण से उपर्युक्त दोनों वाक्यों का प्रारूप यथार्थ है। अब यदि इन दोनों वाक्यों को मूल माने, तो सप्तभंगी का प्रतीकात्मक प्रारूप निम्न प्रकार होगा१. स्यादस्ति
= P (A) २. स्यान्नास्ति
= P ~(~A) ३. स्यादस्ति च नास्ति
= P (A. (~A) ४. स्यात् अवक्तव्यम्
= P (~C) ५. स्यादस्ति च अवक्तव्यम् = P (A. ~C) ६. स्यानास्ति च अवक्तव्य
= P (~ (A.). ~C) ७. स्यादस्ति च नास्ति च अवत्तव्यम् = P (A. ~(~A.). ~C)
इस प्रतीकीकरण में A और ~~A वक्तव्यता के और ~C अवक्तव्यता के सूचक हैं। किन्तु स्यास्ति और स्यानास्ति को क्रमश: A और ~A अथवा A और ~~A मानना उपयुक्त प्रतीत नहीं होता है क्योंकि नास्ति भंग परचतुष्टय का निषेधक है और अस्तिभंग स्वचतुष्टय का प्रतिपादक है। यदि उन्हें A और ~A का प्रतीक दिया जाय तो उनमें व्याघातकता प्रतीत होती है, जबकि वस्तुस्थिति इससे भिन्न है। अत: स्वचतुष्टय और परचतुष्टय के लिए अलग-अलग प्रतीक अर्थात A और B प्रदान करना अधिक युक्तिसंगत है।
हमने स्वचतुष्टय के लिए A और परचतुष्टय के निषेध के लिए ~B माना
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