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सप्तभंगी बहुमूल्यात्मक तर्कशास्त्र के सन्दर्भ में
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का अतिक्रमण करना चाहते हैं तो हमें अवक्तव्यता का सहारा लेना पड़ता है। इस प्रकार अस्ति, नास्ति और अवक्तव्यता ये अभिव्यक्ति के प्रारूप हैं। अभिव्यक्ति के इन तीनों प्रारूपों में पारस्परिक संगति और अविरोध रहे और वे एक दूसरे के निषेधक न बनें, इसलिए जैन आचार्यों ने प्रत्येक प्रकथन के पूर्व स्यात् पद लगाने की योजना की। इन तीनों अभिव्यक्तियों के प्रारूपों के पारस्परिक संयोग से स्यात् पद युक्त जो सात प्रकार के प्रकथन बनते हैं उसे सप्तभंगी कहते हैं।
___जैन-आचार्यों ने इस सप्तभंगी को विभिन्न रूपों में परिभाषित किया है। तत्त्वार्थराजवार्तिक में सप्तभंगी का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि एक वस्तु में अविरोधपूर्वक विधि और प्रतिषेध की कल्पना को सप्तभंगी कहते हैं। ('प्रश्नवशादेकस्मिन् वस्तुन्यविरोधेन विधि प्रतिषेधविकल्पना सप्तभंगी' अर्थात् प्रश्नकर्ता के जिज्ञासा को ध्यान में रखते हुए नाना धर्मों से समन्वित किसी पदार्थ के विवक्षित धर्म का अविवक्षित नाना धर्मों से अविरोध पूर्वक सप्त प्रकार के वाक्यों द्वारा कथन करना सप्तभंगी है।
पंचास्तिकाय में कहा गया है कि प्रमाण वाक्य से अथवा नय वाक्य से किसी एक वस्तु में अविरोध रूप से जो सत् व असत् आदि धर्म की कल्पना की जाती हैउसे सप्तभंगी कहते हैं।
एकास्मिन्नविरोधेन प्रमाणनयवाक्यात् ।
सदादिकल्पना या च सप्तभङ्गीति सा मता ॥२
सप्तभंगातरंगिणी तथा न्यायदीपिका में भी सप्तभंगों के समूह को ही सप्त भंगी कहा गया है
सप्तानां भङ्गानां समाहारः सप्त भङ्गीति।
सप्तभंगीनय प्रदीपप्रकरण भी सप्तभंगी को इसी रूप में परिभाषित करता है। उसमें कहा गया है कि विधि और निषेध के द्वारा अपने अभिप्रेत अर्थ का अभिधान करने वाला नय समूह सप्तभंगी है।
विधिनिषेधाभ्यां स्वार्थमभिधानं, सप्तभंगीमनुगच्छति।
इस प्रकार अनेकान्तवादियों ने अनन्त धर्मात्मक वस्तु के एक-एक धर्म को अभिमुख करके विधि-निषेध की कल्पना द्वारा सात प्रकार के भंगों (प्रकथनों) की योजना की है। इन्हीं सातों भंगों के समाहार को सप्तभंगी कहते हैं।
इस सप्तभंगी के सम्बन्ध में विचारकों में बड़ा मतभेद है। कुछ दार्शनिकों के अनुसार यह सप्तभंगी जैन आचार्यों की मन-गढन्त कल्पना है तथा दूसरे दार्शनिक इसे अर्धसत्यों का प्रतिपादक सिद्धान्त कहते हैं, किन्तु यह यथार्थ नहीं है। यह तो वस्तु की यथार्थता को स्पष्ट करने की एक पद्धति है, यह जटिल वस्तु-स्वरूप के प्रतिपादन
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