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Multi-dimensional Application of Anekantavāda
अनेक घटनाएं पढ़ने-सुनने में आई हैं जब किसी ने दूर से कोई दृश्य देखकर उसे पूर्णतया समझे बिना अपने मन में कोई मिथ्या भ्रम पैदा कर लिया और उस गलतफहमी का निवारण करने का उपाय न कर उसका, शिकार हो, न केवल स्वयं मनस्ताप का भागी हुआ, अपितु अपने परिवारजनों को भी दु:खी कर बैठा अथवा अकल्पनीय अपराध या कुकृत्य कर बैठा। अत: जो कुछ हमारी दृष्टि देखती है वही सब सही है, आवश्यक नहीं है।
ऐसा भी होता है कि कभी हम कहीं ऐसी जगह पहुँचे जहां दो लोग पहले से आपस में बात कर रहे हों। उनकी बातचीत का कोई अंश हमारे कानों से टकराया नहीं कि हम ठिठक गये और बिना पूर्वापर मालूम किये उस टुकड़े के आधार पर पूरी बात का ताना-बाना अपनी कल्पना से बुनने लगे और फिर उसके आधार पर उन बात करने वालों के प्रति अपने मन में धारणा बनाने लगे, अपने मन को कुण्ठाग्रस्त करने लगे या उनके प्रति दुष्प्रचार या भ्रामक प्रचार करने लगे। ऐसी घटनाओं का भी सर्वथा अभाव नहीं है। परस्पर सम्बन्धों में अधिकांश गलतफहमियों के मूल में हमारे कानों द्वारा सुने किसी वार्तालाप के यत्किंचित् वे टुकड़े होते हैं जिनका पूर्वापर जानने का यत्न किये बिना हम मिथ्या भ्रान्ति के शिकार हो जाते हैं। अत: अपने कानों का भी सत्य जानने के सम्बन्ध में पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता।
भले ही आँखों और कानों के बीच चार-चार अंगुल का फैसला है, यदि हम इन दोनों का समन्वयात्मक प्रयोग किसी घटना के दृश्य या श्रव्य को समझने के लिए करें और अपनी विवेक बुद्धि का प्रयोग किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के पूर्व, घटना के पूर्वापर को समझने के लिये करें, तो कदाचित् हम मिथ्या भ्रान्तियों का शिकार होने और पारस्परिक सम्बन्धों में कटुता लाने से बच सकें।
_ 'गुरुजी हममे ज्यादा ज्ञानी हैं और इसी प्रकार ‘पुस्तक प्रणेता भी हमसे ज्यादा ज्ञान रखते हैं। इसमें सन्देह करने अथवा ऊहापोह करने की विशेष बात नहीं हैं। किन्तु क्या गुरुजी जिनसे हमने अध्ययन किया और पुस्तक प्रणेता विद्वान् जिनकी पुस्तक हमने पढ़ी, सर्वज्ञ हैं, इस प्रश्न का उत्तर देना कदाचित् कठिन है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, ज्ञान का भण्डार असीम है, अनन्त है। अपनी-अपनी क्षमता
और रुचि के अनुरूप सभी लोग अधिकाधिक ज्ञानार्जन का प्रयास करते हैं। किन्तु ज्ञान का सम्पूर्ण भण्डार किसी एक व्यक्ति या किन्हीं व्यक्तियों की सामर्थ्य में हो, यह दावा तो शायद ही कोई कर सके । सर्वज्ञ केवली भगवान भी शायद स्वयं यह दावा करने में संकोच कर जायें, फिर हम जैसे साधारण मनुष्यों की विसात ही क्या?
आज संसार का बड़े से बड़ा वैज्ञानिक यही कहता है कि वह परमाणु की
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