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Multi-dimensional Application of Anekäntavāda
पूर्वग्रहीत निर्णय प्राय: एकान्तिक दृष्टि के कारण होते हैं। कहने का आशय यह है कि यदि अनेकान्तवाद का सही-सही उपयोग हो तब पूर्वाग्रह स्वत: ही समाप्त हो जायेंगे। पूर्वाग्रह समाप्त करने, जनमत को बदलने और रूढ़ियुक्तियों को मिटाने में अनेकान्त की भूमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता।
पहले पूर्वग्रहीत निर्णय की विशेषताओं पर प्रकाश डालना प्रासंगिक होगा। १. पूर्वग्रहीत निर्णय सीखे जाते हैं। २. पूर्वग्रहीत निर्णय चेतन और अचेतन होते हैं। ३. इनका सत्य से कोई सम्बन्ध नहीं होता। ४. यह झूठा संतोष प्रदान करते हैं । ५. पूर्वग्रहीत निर्णय दोषपूर्ण और दृढ़ सामान्यीकरण पर आधारित होते हैं।
पूर्वग्रहीत निर्णय वर्ण, गन्ध, मुखाकृति, भाषा, वेश-भूषा, धर्म जाति, आर्थिक वर्ग एवं राजनीतिक क्षेत्र के आधार पर हो सकते हैं।
पूर्वग्रहीत निर्णय के कारणों पर प्रकाश डालते हए मनोवैज्ञानिकों ने आत्मप्रेम. सीखना, अनुकरण, विशिष्टता की भावना, विफलता तथा नैराश्य, आघात जन्य अनुभव, व्यक्तिगत विशेषताएं, धर्म तथा प्रचार, सामाजिक रोक-थाम, सांस्कृतिक तथा आर्थिक अन्तरों के अतिरिक्त भौगोलिक, राजनैतिक तथा ऐतिहासिक कारणों को प्रमुखता से लिया है।
जैसा कि पूर्व में कहा गया है कि पूर्वाग्रह एकान्त दृष्टि के कारण होते हैं, यहां स्याद्वाद पद्धति द्वारा इन्हें कम करने या समाप्त करने में अनेकान्तवाद की प्रमुख भूमिका हो सकती है क्योंकि अनेकान्तवाद हमें किसी भी वस्तु या घटना के प्रत्येक सम्भावित पहलू पर विचार कर निर्णय लेने का अवसर प्रदान करता है। इस प्रकार भीड़ व्यवहार को जानने, गुणारोपण करने एवं पूर्वाग्रहों को समाप्त करने के अतिरिक्त सामाजीकरण, अधिगम तथा व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण के सन्दर्भ में अनेकान्तवाद की महती भूमिका पर सम्यक् शोध होना आवश्यक है। प्रस्तुत शोध पत्र तो मात्र कुछ मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर ही केन्द्रित है। आवश्यकता तो इस बात की है कि अनेकान्तवाद के अन्य व्यावहारिक पहलुओं पर भी शोध कार्य हो।
संक्षेप में, कहा जा सकता है कि जैनाचार्यों द्वारा प्रतिपादित अनेकान्तवाद एक पूर्ण मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय है जो आज के मानव को अनन्त समस्याओं, चिन्ता, वैराग्य और मानसिक तनावों से उत्पन्न विकारों से मुक्ति दिला सकता है किन्तु यह तभी सम्भव है जब कि अनेकान्तवाद को आधुनिक मनोवैज्ञानिक रूप में ग्रहण किया जाए।
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