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________________ समन्वय, शान्ति और समत्य योग का आधार अनेकान्तवाद डॉ० प्रीतम सिंघवी यह विश्व अनेक तत्त्वों की समन्विति है। वेदान्त दर्शन ने अद्वैत की स्थापना की परन्तु द्वैत के बिना विश्व की व्याख्या नहीं की जा सकी तो उसे माया की परिकल्पना करनी पड़ी। उसने ब्रह्म को सामने रखकर विश्व के मूलस्रोत की और माया को सामने रखकर उसके विस्तार की व्याख्या की । सांख्य-दर्शन ने द्वैत के आधार पर विश्व की व्याख्या की। उसके अनुसार पुरुष चेतन और प्रकृति अचेतन है, दोनों वास्तविक तत्त्व हैं। इस प्रकार विश्व की व्याख्या के दो मुख्य कोण हैं-अद्वैत और द्वैत। जो दार्शनिक विश्व के मूल स्रोत की खोज में चले, वे चलते-चलते चेतन तत्त्व तक पहँचे और उन्होंने चेतन तत्त्व को विश्व के मूलस्रोत के रूप में प्रतिष्ठित किया। जिन दार्शनिकों को विश्व के मूल स्रोत की खोज वास्तविक नहीं लगी, उन्होंने उसमें होने वाले परिवर्तनों की खोज की और उन्होंने चेतन तथा अचेतन के स्वतंत्र सत्ता की स्थापना की। प्रत्येक दर्शन अपनी-अपनी धारा में चलता रहा और तर्क के अविरल प्रवाह से उसे विकसित करता रहा। इसका परिणाम यह हुआ कि दार्शनिक जगत् में वाद-विवाद और पारस्परिक विरोध मुखर हो उठे। हमें यह सोचना चाहिए कि सभी वाद एक दूसरे के विरोधी हैं, इसका कारण क्या है? विचार करने पर मालूम पड़ता है कि इस विरोध के मूल में मिथ्या आग्रह है। यही आग्रह एकान्त आग्रह कहा जाता है। दार्शनिक दृष्टि संकुचित न होकर विशाल होनी चाहिए। जितने भी धर्म वस्तु में प्रतिभासित होते हों, उन सबका समावेश उस दृष्टि में होना चाहिए। यह ठीक है कि हमारा दृष्टिकोण किसी समय किसी एक धर्म पर विशेष बल देता है, किसी समय किसी दूसरे धर्म पर। इतना होते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि वस्तु में अमुक धर्म है और अमुक धर्म नहीं। वस्तु का पूर्ण विश्लेषण करने पर प्रतीत होगा कि वास्तव में हम जिन धर्मों का निषेध करना चाहते हैं, वे सब धर्म वस्तु में विद्यमान हैं। इसी दृष्टि को सामने रखते हुए वस्तु अनन्तधर्मात्मक कही जाती है। वस्तु, स्वभाव से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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