________________
286
Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
अपने पक्ष की स्थापना करते हुए भी वस्तु तत्त्व में निहित अन्य "अनुक्त' अनेकानेक धर्मों एवं संभावनाओं (पर्यायों) का निषेध न करे। वस्तुतः स्याद्वाद हमारे निर्णयों एवं तज्जनित कथनों को प्रस्तुत करने का एक निर्दोष एवं अहिंसक तरीका है। अविरोध पूर्वक कथन की एक शैली है। उसका प्रत्येक अंग अनेकांतिक ढंग से एकान्तिक कथन करता है, जिसमें वक्ता अपनी बात इस ढंग से कहता है कि उसका वह कथन अपने प्रतिपक्षी का पूर्ण निषेधक न बने।'' १९
सारांश यह है कि स्याद्वाद एक ऐसी भाषायी पद्धति है जो वस्तुओं में निहित अनंत धर्मों के कथन में प्रयुक्त होने वाली भाषा शैली को सुसंबद्ध सुनियोजित एवं अनुशासित बनाती है जिससे वह विभिन्न मत मतान्तरों में उपस्थित विरोधों का शमन एवं समन्वय करते हुए सापेक्षिक कथन करने में समर्थ हो सके।''२०
जैन दर्शन के अनुसार वस्तुएँ अनंतधर्मात्मक हैं। इन अनंत गुण-धर्मों के कारण ही वस्तु को अनेकान्तात्मक कहा जाता है। वस्तु का यह अनेकान्तात्मक स्वरूप स्याद्वाद के द्वारा मुखरित होता है, इसीलिए स्याद्वाद को अनेकान्तवाद का वाचक कहा जाता है। स्याद्वाद का यह भाषायी रूप जिन प्रकथनों से अभिव्यक्त होता है, उसे . सप्तभंगी कहते हैं, अनेकान्त, स्याद्वाद और सप्तभंगी एक दूसरे के पूरक हैं।
जैन अचार्यों की दृष्टि में सप्तभंगी एक ऐसा सिद्धांत है जो वस्तु का आंशिक किन्तु यथार्थ कथन करने में समर्थ होता है, क्योंकि उसके प्रत्येक भंग में प्रयुक्त स्यात् शब्द का एक ऐसा प्रहरी है, जो प्रकथन मर्यादा को संतुलित रखता है। वह संदेह एवं अनिश्चय का निराकरण कर वस्तु के किसी गुण-धर्म विशेष के संबन्ध में एक निश्चित स्थिति को अभिव्यक्त करता है कि वस्तु अमक दृष्टि से अमक धर्मवाली है। सामान्यरूप से हमारी भाषा अस्ति और नास्ति की सीमाओं से बंधी हुई है। हमारा कोई भी प्रकथन या तो अस्तिवाचक होता है या नास्तिवाचक। यदि हम इस सीमा का अतिक्रमण करना चाहते हैं तो हमें अवक्तव्यता का सहारा लेना पड़ता है। इस प्रकार अस्ति-नास्ति और अवक्तव्यता में अभिव्यक्ति के तीन प्रारूप हैं। इन तीनों प्रारूपों में पारस्परिक संगति
और अविरोध रहे और वे एक दूसरे के निषेधक न बनें इसलिए जैन आचार्यों ने प्रत्येक प्रकथन के पूर्व स्यात् पद लगाने की योजना की। यथा(१) स्यादस्ति (२) स्यान्नास्ति (३) स्यादस्ति च नास्ति (४) स्याद्अवक्तव्यं (५) स्यादस्ति च अवक्तव्यं (६) स्यानास्ति च अवक्तव्यं, (७) स्यादस्तिनास्ति च अवक्तव्यं ।
गणित शास्त्र के 'Law of Permutation and Combination' के नियमानुसार अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य इन तीन भंगों से चार संयुक्त भंग बनकर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org