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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
के रेखाओं के बीच खड़े मनुष्य कब कालकवलित हो जाएं यह कहा नहीं जा सकता है। कैसी हो गई हमारी वृत्ति, कैसा हो गया राम का राज्य, कहाँ गई महावीर की प्राणिमात्र के प्रति कही जाने वाली आत्मीयता, बुद्ध का बोधि वृक्ष कहाँ लुप्त हो गया, नानक का सौदाई किन गलियों में चक्कर लगा रहा, कहाँ गए वे संत, जिन्होंन उद्घोष दिया था
“मित्ति मे सव्व-भूएसु वेरं मज्झं ण केणई' चाहे पीड़ितजन हों, प्रताड़ित जन हों या पद-दलित मानव हों, वे पहले मानव हैं बाद में और कुछ। प्राणिमात्र अपने को बचाना चाहता है, प्रेम पूर्वक रहना चाहता है, जो है उसी में संतोष करके जीना चाहता है। यह क्रान्तिकारी विचार अनेकान्तवाद की नींव पर स्थापित सामाजिक जीवन की सादगी में विश्वास करता है। शान्ति-सहअस्तित्व
धर्म यो बाधते धर्मो न स धर्मः कुधर्म तत् ।
अविरोधात् तु यो धर्मः स धर्मः सत्यविक्रम:११६।। __ महाभारत ने आज के संत्रस्त और भयाक्रान्त विश्व के सामने यह भावना रखीकि संसार में किसी का भी धर्म ऐसा नहीं होना चाहिए, जिससे दूसरों को संकट का सामना करना पड़े। यदि ऐसा होता है तो वास्तव में वह धर्म, धर्म हो ही नहीं सकता है। मानव के चिन्तन में एक ही बात आनी चाहिए -
___“आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ।”
जो अपने आपके लिए प्रतिकूल हो, अपने आपका अहित करने वाला हो, जो अपने देश और राष्ट्र की उन्नति में बाधक हो ऐसा आचार, ऐसा विचार, ऐसी धारणा, ऐसी मान्यता, ऐसा अप्रिय व्यवहार फिर क्यों ?
धर्म मानव के कर्तव्यों का बोध कराता है, निर्णय की ओर ले जाता है, मानवीय गुणों की ओर सचेत करता है, सद्विचारों का संचालन करता है। जैसा मैं हूँ, वैसे ही पशु हैं, वनस्पति आदि भी हैं, जगत् के प्राणिमात्र को जीने का अधिकार है, मैं भी जीना चाहता हूँ और वे भी जीना चाहते हैं आदि विचार लाता है शान्ति प्रिय सभी हैं।
सह अस्तित्व भौतिकवादी-वैज्ञानिक युग में मानव जाति के साथ समस्त चराचर सूक्ष्म से सूक्ष्म और स्थूल से स्थूल जीवों की रक्षा का मार्ग है। युद्ध शान्ति का मार्ग नहीं
युद्ध हुए, होते आए और होते रहेंगे, यह अलग बात है, परन्तु युद्ध न हो इसके लिए भी रास्ता खोजना होगा। दो शक्तियाँ, दो विरोधी विचारधाराएं, दो स्वार्थी, दो निरपेक्ष, दो विपरीत परिणाम जहाँ टकराते हैं, वहाँ युद्ध प्रारम्भ हो जाता है। आतंक, अराजकता फैल जाती है, नियमों का उल्लंघन होने लगता है। ऐसे में शान्ति की कल्पना, शान्ति का मार्ग खोज पाना अति दुष्कर कार्य हो जाता है। थोड़ी सी अल्पज्ञता, बहुतों का विनाश
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