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________________ 267 अनेकान्त: स्वरूप और विश्लेषण दव्वे जहा परिणयं तहेव अस्थि ति तम्मि समयम्मि । विगयभविस्सेहि उ पज्जयहिं भयणा विभयणा वा१११।। द्रव्य जिस समय जिस रूप में परिणत होता है, वह उसी प्रकार का हो जाता है। जो द्रव्य भूत, भविष्यत् और वर्तमान की पर्यायों को अपने में समेटे रहता है, उस समय उस द्रव्य में भेद भी है और अभेद भी है। एक ओर युद्ध है, तो दूसरी ओर शान्ति भी होगी। प्रतीत्यवचन-अनेकान्तवाद की युक्ति जो वचन वर्तमान, भूत और भविष्य पर्याय के साथ समन्वय की स्थापना करता है, वह यथार्थ है, सत्यार्थ है, भिन्न-भिन्न वस्तुओं से सम्बन्ध रखने वाला है, ज्ञानपूर्वक उच्चरित है । कालक्रम से भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में समन्वय स्थापित करने वाला है, युक्तियुक्त भी है - अनेकान्त में एकान्त एगंत-णिव्विसेसं एगंत-विसेसियं च वयमाणो । दव्वस्स पज्जवे पज्जवा हि दवियं णियत्तेइ११२।। एकान्त-सामान्य ही है, एकान्त विशेष वस्तु में धर्म होते हैं ऐसा मान लिया जाए या अनेकान्त केवल अनेकान्त है, एकान्त केवल एकान्त है या एकान्त-सामान्य का लोप करके विशेष का कथन किया जाए तो वह अनेकान्त का प्रतिपादन नहीं हो सकता है। शाखाओं के अभाव में वृक्ष, वृक्ष संज्ञा को नहीं प्राप्त होता है। द्रव्य पर्याय से और पर्याय द्रव्य से भिन्न नहीं है। जहाँ द्रव्य है जहाँ वस्तु है, वहाँ उसकी पर्यायें हैं, उसके धर्म हैं, शाखाओं से ही वृक्ष हैं उसी प्रकार अनेकान्त में भी एकान्त है। वस्तु में जो भी धर्म होते हैं वे परस्पर उपकार्य-उपकारक भाव के बिना नहीं रह सकते हैं। वस्तु के धर्म एक दूसरे से अलग नहीं हैं। अभेद-भेद समन्वयकारी वचन भयणा-अभेद और विभयणा-भेद भी भिन्न-भिन्न वस्तुओं का समन्वय करता है। क्योंकि ये दोनों युक्तियुक्त वचनों पर आधारित हैं। पच्चुप्पण्णम्मि वि पज्जयम्मि भयणागई पडइ दव्वं ।। जं एगगुणाईया अणंतकप्प गुणविसेसा२१३।। वर्तमान काल की पर्याय में भी द्रव्य ‘भयणागति” को प्राप्त होता है अर्थात् कथंचित् सत् और कथंचित् असत् को प्राप्त होता है। जैसे मिट्टी का घड़ा जो वर्तमान पर्याय में है, इससे पूर्व भी घट का मिट्टी से निर्माण हुआ होगा। उनमें आकार-प्रकार, रंग आदि की दृष्टि से कुछ न कुछ भिन्नता अवश्य रही होगी। भिन्नता का प्रतिपादन अर्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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