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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
शुद्ध जल पीता है, वैसे ही स्वसंवेदन भावना से शून्य मिथ्यात्व युक्त मनुष्य रागादि विभाव परिणाम सहित आत्मा का अनुभव करता है, ऐसा अनुभव करने वाला व्यक्ति अभूतार्थ को विषय करने वाला है।
___ “ववहारोऽभूदत्थो भूदत्थो देसिदो दु सुहणओ।'
व्यवहार अभूतार्थ है, "अभूतार्थ: असत्यार्थो भवति'' अभूतार्थ असत्यार्थ होता है और जो असत्यार्थ होता है वह वस्तु धर्म की समग्र विशेषता को प्रकट करता है ।
भूतार्थ शुद्धनय है, भूतार्थ: सत्यार्थः” भूतार्थ सत्यार्थ है, वस्तुधर्म की पूर्णता लिए हुए है, वह सम होता है, वस्तु के समान्य धर्म को स्वीकार करता है। भूतार्थ का
आश्रय लेकर ही सद्वृष्टि पैदा होती है, सद्भाव उत्पन्न होता है, विशुद्ध धर्म की प्रतीति होती है। भूतार्थ/सत्यार्थ में समाविष्ट व्यक्ति के लिए एक ही आभास होता है कि
आदा खु मज्झ णाणे आदा मे दंसणे चरित्ते य। आदा पच्चक्खाणे आदा मे संवरे जोगे५९।।
मेरे ज्ञान में, मेरे दर्शन में, मेरे दर्शन में, मेरे चारित्र में, मेरे प्रत्याख्यान में, मेरे संवर में और मेरे योग में आत्मा ही आत्मा है।
“निश्चयनय: परमार्थ प्रतिपादकत्वाद्भूतार्थो ।'' निश्चयनय परमार्थ प्रतिपादक होने से भूतार्थ है। भूतार्थ शुद्ध है, अभेद है, निश्चय है, सत्यार्थ, परमार्थ है, सामान्य है, और अभूतार्थ भेद है, व्यवहार है, असत्यार्थ है, विशेष है। अनेकान्त के संवाहक-निश्चय और व्यवहार नय १. निश्चय नय
“अभिन्नकर्तृ-कर्मादि विषयो निश्चयो नय:६०।' जहाँ कर्ता, कर्म आदि विषय अभिन्न हैं, वहाँ निश्चय नय है।
“शुद्ध द्रव्य निरूपणात्मको निश्चयनय:६९।''
जो शुद्ध द्रव्य का निरूपण करने वाला है, वह निश्चय नय है। सांचा निरूपण निश्चय है, सत्यार्थ का नाम निश्चय है।
अभेदानुपचारतया वस्तु निश्चीयत इति निश्चयः ।” (आ०प० ९)
अर्थात् जहाँ अभेद और अनुपचार से वस्तु का निश्चय किया जाता है, वह निश्चय नय है।'' परमार्थविशेषेण संशयादिरहितत्वेन निश्चयः।'' (प्र० सा० ता० वृ० ९३) परमार्थ के विशेषण से संशयादि रहित निश्चय अर्थ का ग्रहण किया जाता है।
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