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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
वस्तु को स्वीकार करने वाला द्रव्यार्थिकनय है। (कषाय पाहुड़ १/१३, धवला ९/४) पर्यायार्थिक नय
जहाँ द्रव्य को गौण करके पर्याय विशेष का ग्रहण किया जाता है, वहाँ पर्यायार्थिक नय होता है अर्थात जिस नय का प्रयोजन ही पर्याय है, जो पर्याय को विषय करने वाला है, जो विशेष पर आधारित है, भेद-प्रभेद जिसकी दृष्टि है, जो ऋजुसूत्र नय के वचन विच्छेद से लेकर एक समय पर्यन्त वस्तु की स्थिति का निश्चय कराने वाला है वह पर्यायार्थिक नय है।
जो साहेदि विसेसे बहुबिह-सामण्ण-संजुदे सव्वे । साहणलिंग-वसादो पज्जयविसओ णओ होदि६॥
जो साधन लिंग के कारण से नाना प्रकार के विकल्पों को सामान्य के होने पर भी सिद्ध करता है, भेद-प्रभेद, पर्यायादि को ग्रहण करता है वह पर्यायार्थिक नय है। यह जीव के रूप में स्थित नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव, सिद्धत्वादि पर्यायों को अलग-अलग ग्रहण करने वाला है। जैसे
'जीव' द्रव्य है, जीव उपयोगमय है, अमूर्तिक है, कर्ता है, शरीर प्रमाण है, भोक्ता है, संसारी है, सिद्ध है और स्वभाव से ऊर्ध्वगमन को प्राप्त होने वाला है अथवा यह ग्रहण करता है कि एकेन्द्रिय में चार प्राण, द्वीन्द्रिय में छ: प्राण, त्रीन्द्रिय में सात प्राण, चतुरेन्द्रिय में आठ प्राण, पंचेन्द्रिय असंज्ञी में नौ प्राण और संज्ञी पंचेन्द्रिय में दश प्राण होते हैं।
कतिविहा णं भंते ! रुक्खा पण्णत्ता ? गोयमा! तिविहा रुक्खा पण्णत्ता ।।
-इत्यादि कथन पर्यायार्थिक नय का विषय है। द्रव्यार्थिक नय में जहाँ द्रव्य को सर्वोपरि माना गया है, वहाँ पर्यायार्थिक में वस्तु की विविध पर्यायों को विषय बनाया जाता है। उस पर्याय वस्तु के विविध पक्षों की विवेचना करने वाले नय के छ: भेद हैं - १. अनादि नित्य-पर्यायार्थिक नय
यह नय अकृत्रिम, अनिधन, आदि-अनादि, अनन्त चन्द्र और सूर्य की पर्यायों को ग्रहण करता है, उनको विषय बनाता है अर्थात् चन्द्र, सूर्य, विश्व, जीव, पुद्गल आदि अनादि नित्य पर्याय हैं, इन्हें किसी ने बनाया नहीं है, अनादिकाल से इनका अस्तित्व चला आ रहा है और सदा बना रहेगा। ऐसी अनादि नित्य पर्यायों को ग्रहण करने वाला यह नय है, जैसे- सुमेरु ।
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