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जैन साहित्य समारोह - गुच्छ २
आपके प्रताप, प्रभाव एवं प्रसाद से सज्जन पुरुषों के चित्त को प्रफुल्लित करेगा ।1 अर्थात् सम्यकदर्शन ज्ञान की प्राप्ति में सहायक होगा। सच तो यही है कि भक्त की लघुता, अहम् का तिरोहण, आराध्य के चरणों में समर्पण ही भक्ति की उच्चता है। ___इस पूरे स्तोत्र में भक्ति की सर्वश्रेष्ठता स्वयिता ने सिद्ध की है । यह बाह्य रूप से लौकिक स्मरग इस जीव को निश्चयनय से कर्मों के बन्धनों से मुक्त कर स्वयं तीर्थकरों-सा समुन्नत बनाता है। कर्मो का क्षय करके यह जीवन जन्म-मरण के भयों से छुटकर मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त करता है। पूरे स्तोत्र की इस प्रकार आध्यात्मिक मीमांसा की जा सकती है।
इस भक्तामर स्तोत्र को सर्वसिद्धिदातामंत्र स्तोत्र कहा गया है । दक्षिण में ऐसे ४८ यंत्र प्राप्त हुए हैं। एक-एक यंत्र एक-एक श्लाक संबंधी है। और प्रत्येक श्लोक किन-किन पीड़ाओं को दूर कर कौन-कौन सी सिद्धि प्रदान करता है, उसकी विधि-विधान क्या है इसका स्पष्ट उल्लेख किया गया है। इन सबका विषद विवेचन एक अलग से विषय हो सकता है। कलापक्ष
__ अभी तक के विवेचन में स्तोत्र के भावपक्ष पर प्रकाश डाला गया। अब मै उसके कलापक्ष जो अभिव्यक्ति का सौन्दर्य पक्ष है उस पर विचार व्यक्त करूँगा। इसके अन्तर्गत भाषा का सौन्दर्य उसकी शक्ति, अलंकार आदि की चर्चा प्रधान है। यदि रचना की आत्मा उसका भावपक्ष है तो उसका कलेवर या शरीर उसकी भाषा या कलापक्ष है। अनुभूति का सौन्दर्य भाषा द्वारा निखर ऊठता है।
भक्तामर स्तोत्र की भाषा मूल संस्कृत है इसे हम सभी जानते - हैं। पर कवि ने शब्दचयन द्वारा उसे संवारा है। पं. अमृतलाल 1. (८)
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