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जैन दर्शन में दिकू और काल की अवधारणा
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"१९६४ में आणविक कालमान का प्रयोग आरंभ हुआ । अथ: एक सैकिण्ड की लम्बाई की व्यवस्था एक सीसियम अणु के ९,१९, २६,३१,७७० स्पंदनों के लिये आवश्यक अन्तर्काल के रूप में की. गई है। . आणविक घड़ी द्वारा समय का निर्धारण इतनी बारीकी और विशुद्धता से किया जा सकता है कि उससे त्रुटि की सम्भावना ३० हजार वर्षों में एक सैकिण्ड से भी कम होगी । विज्ञानिक आज-. कल हाइड्रोजन घडी विकसित कर रहे हैं जिसको शुद्धता में त्रुटि की सम्भावना ३ करोड वर्षों के भीतर एक सैकिण्ड से भी कम होगी ।"
इस प्रकार आज विज्ञानजगत में प्रयुक्त होनेवाली आणविक घडी सैकिण्ड के नौ अरब उन्नीस करोड छब्बीस लाख इकतीस हजार - सात सौ सत्तरवें भाग तक का समय सही प्रकट करती है । भौतिक -तत्वों से निर्मित घडी ही जब एक सैकिण्ड का दस अरबवां भाग तक सही नापने में समर्थ है और भविष्य में इससे भी सूक्ष्म समय नापने वाली घड़ियों के निर्माण की सम्भावना है अतः एक आवलिका में असंख्यात समय होता है । अब इसमें आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं रह गई है ।
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समय की सूक्ष्मता का कुछ अनुमान गति व लम्बाई के उदाहरण से भी लगाया जा सकता है । लम्बाई का प्रतिमान मीटर (वार) है । परन्तु सन् १९६० में लम्बाई के प्रतिमान मीटर का स्थान क्रिप्टन- ८६ नामक दुर्लभ गैस से निकलने वाली नारंगी रंग के प्रकाश के तरंग - आयामों की निर्दिष्ट संख्याओं ने ले लिया है। अतः अब एक मीटर, : क्रिप्टन के १६५०,७६३.७३ तरंग आयामों के बराबर होता है । प्रकाशकिरण की एक सैकिण्ड में १,००००० किलोमीटर है। एक किलोमीटर में १००० मीटर होते है अतः प्रकाशकिरण एक सैकिण्ड में ३००००० × १०००×१६५०७६३.७३ = ४९५२२१११९०००५०००० क्रिप्टन आयामों के बराबर चलता है । अतः उसे एक आयाम
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