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जैन साहित्य संमारोह
पर जैन साहित्य के इतिहास को व्यवस्थित रूप से लिखने का सर्व प्रथम प्रयत्न स्वर्गीय मोहनलाल दलीचन्द देसाईने किया। गुजराती में उनका लिखा हुआ 'जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' नामक १२९० पृष्ठो का बडा ग्रन्थ जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स, बम्बई द्वारा सन १९३३ में प्रकाशित हुआ था। यह उनके २०-२५ वर्षो की खोज और श्रम का परिणाम था। बम्बई हाईकोर्ट के वकील होते हुए भी उस व्यक्तिने विपरीत परिस्थितियों में जिस लगन से जैन साहित्य की महान सेवा की है वैसे घिरल व्यक्ति ही कर पाते है । 'जैन गुर्जर कवियों के ३ भाग और उपरोक्त जैन साहित्य का इतिहास उनकी बडी यादगार है। इसमें जैन इतिहास भी सम्मिलीत है।
स्वर्गीय देसाई के उपरोक्त ग्रन्थ का महत्त्व आज भी बना हुआ है, क्योंकि जैन साहित्य और इतिहास की सुमुल जानकारी जैसे इस ग्रन्थ में दी गई है वैसी और किसी भी ग्रन्थ में नहीं मिलती। कई वर्षा पूर्व मैंने स्वर्गीय कस्तुरमलर्जा बाँढिया से इसका हिन्दी अनुवाद भी करवाया और 'चौखम्बा ग्रन्थमाला', बनारस से उसके प्रकाशनकी बात भी तय हो गयी थी. पर कुछ कारणो से प्रकाशित नही हो सका।
. जैन साहित्य के इतिहास को अलग अलग खण्डो में तैयारकर ने का प्रयत्न प्रो. हीरालाल कापडिया ने भी खूब किया। उन्होने पहले प्राकृत साहित्य सम्बन्धी २-३ पुस्तकें गुजराती और अंग्रेजी में प्रकाशित की। फिर सन १९५२ में उन्होने 'जैन संस्कृत साहित्य का इतिहास' बडा बनाना प्रारम्भ किया जो जैन कलामर्मज्ञ यशोविजयजी की प्रेरणा से तीन बडी जिल्दोंमें प्रकाशित हो चूका है। 'जैन गुजराती साहित्य का इतिहास' भी कापडियाजी लिखनेवाले थे पर अब वृद्धावस्था में कहाँ तक लिख पाये है, मालूम नहीं । लेख तो उनके सैंकडो प्रकाशित हो चुके हैं।
पार्श्वनाथ विद्याश्रम, बनारस द्वारा हिन्दी में जैन साहित्य के
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