________________
जैन साहित्य समारोह वैसे तो जैन समाज भी भारत ही में रहते हैं, इस लिये भारतीय साहित्य में भी जैन साहित्य का भी समावेश हो ही जाता है, पर जब हम वैदिक और बौद्ध साहित्य की अलग से चर्चा करते हैं तो जैन - साहित्य की चर्चा भी स्वतंत्र रूपसे की जानी आवश्यक हो जाती है, क्योंकि उसमें कई बातें व विशषताएँ ऐसी हैं जो दूसरों में नही मिलती यानी वे विशेषताएँ अधिक उभर के सामने आती हैं। इस लिए प्रस्तुत निबंध में भारतीय साहित्य को, जैन . साहित्य का क्या योगदान रहा है इस पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत किया जा रहा है। ... जैन साहित्य की सबसे बडी व प्राथमिक विशेषता है - जनभाषा को विशेष रूपसे अपनाना । जैन तीर्थंकरो ने अपना उपदेश सभी लोगसरलता से इस लिए लोकभाषा में दिया । पहले के २३ तीर्थंकरोकी 'वाणी' अब उपलब्ध नहि है पर भगवान महावीर की वाणी का कुछ अंश २५०० वर्ष बीत जाने के बाद भी हमें प्राप्त है। आगम में यह कहा गया है "कि भगवान महावीरने 'अर्धमागधी' भाषा में उपदेश दिया। उस को
उन के प्रधान शिष्यगणधरोने सूत्र रूप में संकलित किया। जिन बारह (१२) अंगसूत्रोमें उस को संकलित किया गया था जिन में से १२वाँ दृष्टिवाद तो थोडे वर्षो बाद ही लुप्त हो गया। पर अन्य ११ अंग- सूत्र चाहे छोटे रूपमें भी हो पर आज भी उपलब्ध हैं । और उन ‘पर नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य, टीका आदि के रूप में लाखो लोकपरिमित - साहित्य रचा गया है। उन ११ सूत्र और दृष्टिवाद तथा पूर्वाचार्यो व स्थविरोने उपांग आदि अन्य आगमों की रचना की जिनमें से 'दश वैकालिक का तो संयमभवसूरि-रचित हैं और पन्नवणा 'श्यामाचार्य'-रचित हैं। बाकी ग्रन्थो के रचयिताओं के नाम विदित नहीं है। अन्तिम श्रुत आचार्य भद्रबाहुने १० आगमों पर नियुक्तियां भी बनायी, जिनमें से २ को छोडकर बाकी आज भी उपलब्ध हैं। ये सभी रचनाएँ प्राकृत भाषा ही में हैं । आगमो की चूर्णि या कई प्राकृत एवं संस्कृत मिश्रित भाषा में हैं और टीकाएँ संस्कृत में है। महावीर के परवर्ती जैना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org