________________ 43 वैशाली का प्रजातन्त्र वेत्ताओं और इतिहासज्ञों की खोजों ने उनके प्रयत्नों को सफल नहीं होने दिया और अब तो देश की आवश्यकता और मांग है कि विदेशी शासन के हटने के बाद भारत प्रजातन्त्र राज्य घोषित किया जाय / 'हम जानते हैं कि वह समय दूर नहीं है, जब हमारे बालकों के लिए इतिहास की पुस्तकों में वैशाली प्रजातन्त्र के लिये एक विशेष स्थान रखना पड़ेगा। हाँ, अभी भी देश के बड़े नेता इस महत्त्व को नहीं समझते, और न समझने की कोशिश कर रहे हैं, कि भावी भारतीय प्रजातन्त्र को अपने वैशाली और यौधेय प्रजातन्त्रों से कितनी प्रेरणा मिलेगी / यौधेय वही भूमि है. जिसमें राजधानी दिल्ली अवस्थित है, लेकिन दिल्ली के आधुनिक प्रभुओं को इसका ख्याल नहीं है कि एक समय यौधेय के कट्टर शत्रु ने उनके लिये "यौधेयानां जयमंत्रधारिणाम्" लिखा था। जनतन्त्रता से ही बहजनहित हो सकता है, हमारे देश का गौरव-पूर्ण भविष्य इसी बात पर निर्भय करता है, कि यहाँ जनतन्त्रता का एकच्छत्र राज्य हो और इस जनतान्त्रिक भावना के सार्वजनीन प्रसार के लिए हमारे प्राचीन प्रजातन्त्रों का इतिहास बहुत सहायक हो सकता है / प्रजातन्त्रीय कार्य-प्रणाली . गणों की सर्वोपरि शासन-सभा या पालियामेंट को संस्था कहा जाता था और जहाँ संस्था की बैठक हुआ करती, उसे संस्थागार (संथागार) कहा जाता। वैशाली के भीतर संस्थागार की एक बड़ी शाला थी, जिसमें गणतन्त्र के सदस्य इकट्ठा होकर राजकाज और विधान की बातों का निर्णय किया करते थे। संस्थागार की बैठकों में शासकीय कार्य के समाप्त हो जाने पर लोग दूसरी सामाजिक आदि चर्चाओं में लग सकते थे। संस्थागर में कभी-कभी अतिथियों को भी ठहराया जाता था। पालि ग्रन्थों में इस बात का बहुत ध्यान रखा गया है कि संस्था तथा संस्थागार को राजतन्त्रीय देशों से सम्बद्ध न किया जाय। __ वैशाली या कुसीनारा की संस्थाएं किस तरह सभा की कार्यवाही करती थीं, कैसे वादविवाद होते थे और किस तरह वादों का निर्णय और मत लिया जाता था, इसका हमारे पास कोई साक्षात् प्रमाण नहीं है। किन्तु हम जानते हैं कि बुद्ध ने अपने भिक्षु-संघ की स्थापना इन्हीं संघराज्यों के नमूने पर की थी। इसलिये इस विषय में भिक्षुसंघ के विधान (विनय-नियमों) से हम समझ सकते हैं कि संघराज्यों में किस तरह संस्था काम करती थी। गण-राज्य के लिये संघ का शब्द त्रिपिटक में आया है-“हे गौतम ! यह जो संघ है, जैसे कि वज्जी या मल्ल. वह अपने राज्य में 'मारो' कह कर मरवा सकते हैं, 'जलाओ' कह कर जलवा सकते हैं, 'देश निकालो' कह कर देश से निकाल सकते हैं।" _ संस्था के प्रमुख व्यक्तियों में संस्था-राज, उपराज, सेनापति, अष्टकुलिक, व्यवहारिक और विनिश्चय महामात्य का नाम हम बतला चुके हैं। राजा और उपराज, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को कहा जाता। सेनापति सारी लिच्छविसेना का प्रमुख होता-बुद्ध के समय सिंह सेनापति लिच्छवियों का सेनापति था। अष्टकुलिक से 'आठ कुलों के प्रधान व्यक्ति' अर्थ 1. मज्झिमनिकाय 1 / 4 / 5 (पृष्ठ 140)