________________ Homage to Vaisali . इतिहास में जो वैशाली इतनी प्रसिद्ध है, उसके आदर्श क्या थे-यह जानना बहुत जारी है। मगर इस बात को भगवान् बुद्ध ने स्वयं ही अपने प्रवचन में रख दिया है। इन 'सत्त अपरिहानिया धम्मा' के आदर्श न केवल प्राचीन पैशाली के थे, बल्कि किसी भी प्रजातन्त्र वादी राष्ट्र के हो सकते हैं। __ पहली बात जिस पर भगवान् बुद्ध ने जोर दिया था, वह है शासन-समाओं में बार-बार जुटना और शासन-सभाओं का बार-बार होना। ऐसा न होने से देश में तुरत फासिज्म अथवा डिक्टेटरशिप फैल जाता है। अतएव पहला आदर्श भगवान् ने इसे ही रखा था। क्या इससे अभी भी इनकार किया जा सकता है ? शासन-सभाओं के बार-बार न होने से जो बुराई होती है, उसे हम यूरोप में हाल में ही देख चुके हैं। दूसरा आदर्श है मिलकर काम करना, मिलकर उठना-बैठना और मिलकर सष्ट्रीय कर्तव्यों को करना / यह भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। अगर देश में बहुत-सी पार्टियां हों, शासन सभा की बैठक भो बार-बार होती हो और बहुत प्रतिनिधि उसमें भाग भी लेते हों, मगर मेल के बिना, एकमत हुए बिना-काम आगे नहीं बढ़ता। फ्रांस का इतिहास इसे स्पष्ट करता है, जहां की सरकार बराबर बदलती रहती है। मूलमन्त्र भगवान् ने रखा था-बिना कानुन बनाये कोई आज्ञा जारी न करना, बने हुए नियम का उच्छेद न करना और अपने पुराने राष्ट्रीय कानूनों का पालन करना। भगवान बद्ध अवैधानिकता के विरोधी और मध्यमार्ग के अनुयायी थे। सचमुच जल्द-जल्द कानून बदलने से देश में उच्छङ्खलता फैल जाती है और अपने राष्ट्रीय कानूनों के प्रति लोगों के हृदय में उतनी आस्था नहीं रहती है। वैशाली का चौथा आदर्श था वृद्ध-जनों का आदर-सत्कार करना और उनकी सुनने लायक बातों को मानना। अपने लोकनेता के विरुद्ध जाने से देश का भविष्य अनिश्चित हो जाता है; दूसरे, अगर सभी नेता बन जाये, तो भी राष्ट्र का काम नहीं चलेगा। अतएव वृद्धबुजुर्गों की बात माननी चाहिए / मगर यहाँ बुद्ध ने वृद्धों या नेताओं को भी एक चेतावनी दे दी है। उनकी सुनने लायक (सोतब्ब) बातों को ही लोग मान सकते हैं-सभी बातों को नहीं। इसलिए नेता को भी सावधानी से अपने लोगों के बीच मार्ग-प्रदर्शन का काम करना चाहिए / पांचवा आदर्श था स्त्रियों के सम्मान की रक्षा करना–कुलस्त्रियों या कुलकुमारियों पर अत्याचार और जबर्दस्ती न करना। देश में शान्ति और समृद्धि बनाये रखने के लिए यह नियम भी बहुत जरूरी है। नारी जाति पर जबतक अत्याचार होते रहेंगे, तबतक सुख शान्ति आने को नहीं। ' छठा आदर्श था धार्मिक स्थानों का आदर-सत्कार करना। खासकर जहाँ कई धर्मों के मानने वाले लोग हैं, वहाँ इस बात की बड़ी जरूरत हो जाती है। लिच्छवियों ने इस बात को महसूस किया था, क्योंकि वैशाली कई धर्मों का केन्द्र बनती जा रही थी।