________________ E 8/ 10 भारत का सांस्कृतिक तीर्थ 0 सम्पूर्णानन्द यों तो भारतीय संस्कृति का उद्गम और विकास उसके तपोवनों में हुआ है। सिन्धु और सरस्वती के अन्तर्वेद में वह वैदिक संस्कृति प्रस्फुटित हुई जिससे निकली हुई नाना तरंगों से उद्वेलित सुरसरित की अजस्र धारा आज भी इस देश की जनता को अनुप्राणित कर रही है। वशिष्ठ, गौतम, व्यास, याज्ञवल्क्य, सभी तपस्वी थे। अरण्यों में रहकर ही उन्होंने परा-देवता का साक्षात्कार किया था। अरण्यों से ही उनकी वाणी प्रसारित हुई / जिस वाङ्गमय का उन्होंने मानव कल्याण की दृष्टि से निर्माण किया उसमें आज भी उस प्राचीन आश्रमों की झलक दीख पड़ती है / परन्तु जहाँ बौद्धिक और आध्यात्मिक जीवन में वनों और नदी के एकान्त कूलों पर स्थित आश्रमों का इतना ऊंचा स्थान है वहाँ कुछ नगरों से भी हमने बहुत बड़ी देन पाई है। भारतीय संस्कृति पर कुछ नगरों की अमिट छाप है। वैदिक काल में, कम से कम उस काल में जिसका स्वरूप हमको ऋग्वेद और कृष्णयजुर्वेद में मिलता है, सम्भवतः कोई बड़ा नगर नहीं था। आर्यों की बस्ती सप्तसिन्धव के आगे स्यात् नहीं बढ़ी थी, परन्तु शुक्लजुर्वेद और उससे सम्बन्धित शतपथ ब्राह्मण के समय तक तो आर्य सभ्यता निश्चित हो बिहार तक पहुंच चुकी थी। कोसल, काशी और मिथिला के राज्य स्थापित हो चुके थे। माथव विदेष वैदिक अग्नि को सदानीरा के तट तक ला चुके थे, अर्थात् मिथिला में वैदिक यज्ञ-याग होने लग गये थे / इसमें कोई सन्देह नहीं कि सम्भवतः काशी या ऐसे ही एकाध और स्थानों को छोड़कर वैशाली हमारे प्राचीनतम नगरों में है और इसकी महत्ता केवल इसलिये नहीं है कि यह एक सुव्यवस्थित और बलवान गणतंत्र की राजधानी था, वरन् इसलिये कि तत्कालीन धार्मिक विचारधाराओं का संघर्ष और 1. सोलहवें वैशाली महोत्सव (9 अप्रैल, 1960) के अवसर पर दिया गया उद्घाटन भाषण / सौजन्य : श्री नागेन्द्र प्रसाद सिंह, वैशाली। 50