________________ प्रजातन्त्री वैशाली 277 है कि वैशाली अतिप्राचीनकाल से ही व्यापार के लिए प्रसिद्ध थी। राम-परिवारों के सदस्यों के वश्य होने के कारण यह असम्भव नहीं कि राजाओं के छोटे लड़के व्यापार में सक्रिय भाग लेते रहे हों। अर्थसंचय एवं राजकुलोद्भव होने की भावना होने से क्रमशः उसके मन में शासन-कार्य में सक्रिय भाग लेने की इच्छा उत्पन्न हुई होगी और इस प्रकार राजतन्त्र का अन्त कर प्रजातन्त्र की स्थापना हुई होगी। ___लिच्छविगण का चाहे जो भी उद्गम रहा हो, इसमें सन्देह नहीं कि इसमें खास लोग ही भाग ले सकते थे, सब नहीं / आबादी के एक भाग में ही राज्याधिकार सीमित था जिसकी संख्या एक समय 7707 थी। ये शासक राजधानी के रहनेवाले थे और उपराजा, सेनापति एवं भाण्डागारिक जैसे राजपुरुषों द्वारा शासन करते थे। जातक में लिखा है कि ऐसे राज. पुरुषों की संख्या राजाओं की संख्या के बराबर थी / ऐसा मालूम पड़ता है कि शासकवर्ग के हर सदस्य का अधिकार-क्षेत्र किसी खास इलाके में पड़ता था और इस प्रकार के बहुत ही इलाके या विभाग थे, क्योंकि लिच्छविगण में केवल वैशाली का नगर हो नहीं सम्मिलित था, इसमें बाहर के विस्तृत राज्य भी शामिल थे। हर इलाके का शासन उपराजा या प्रतिनिधि . के हाथ में था। यह सम्भव नहीं मालूम पड़ता कि समस्त राज्य से सम्बन्ध रखनेवाली बातों का निर्णय सर्वदा कई हजार शासकों द्वारा ही होता था। विशेष महत्त्वपूर्ण बातों के लिए ये सभी शासक बहुधा संस्थागार या सार्वजनिक भवन में मिलते थे / दैनिक शासनकाय के लिए एक कार्यकारिणी समिति थी, ऐसा प्रतीत होता है। जैनकला-सूत्र में उल्लिखित 'नव-गण-रयनो' सम्भवतः लिच्छविगण के नौ कार्यकारक (एग्जिक्यूटिव) अफसर थे, जैसा कि डा० रमेशचन्द्र मजूमदार का अनुमान है और सम्भवतः इन्हीं से कार्यकारिणी समिति का निर्माण होता था। लिच्छवियों की न्याय प्रणाली के सम्बन्ध में भी हम एक बात कह देना चाहते हैं। जैसा डाक्टर का० प्र० जायसवाल ने कहा है, वैशाली में बहुत से छोटे-बड़े न्यायालय थे / 1. यह जानने की बात है कि कौटिल्य ने दो प्रकार के संघों का वर्णन किया है-(१) राज. शब्दोपजीवी अर्थात् वे जिनके शासक राजा को उपाधि धारण करते थे, (2) आयुषजोबी या वार्ताशस्त्रोपजीवी जिन्हें डा०के० पी० जायसवाल 'Nation-in-Arms republicsr. कहते हैं / यह असम्भव नहीं कि प्रथम वर्ग के संघ साधारणतः हमारे अपरिलिखित ढंग से बन गये हों। 2. देखिये आर० सी० मजूमदार, उल्लिखित, पृ० 227 / 3. बज्जिदेश की सीमा के लिए देखिये जर्नल ऑव बिहार ऐण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटो, भाग 6, 1920, पृ० 259-262 / वैशाली-राज्य की सीमा पर कनिंगहम का मत जानने के लिए देखिये ऐंशियण्ट ज्यॉग्रफो ऑव इण्डिया, पृ० 508-9 / 4. के. पो. जायसवाल, उल्लिखित, पृ. 52 / 5. आर० सी० मजूमदार, उल्लिखित, पृ० 232 /