________________ प्राचीन वैशाली की स्मृति' डॉ. कैलाशनाथ कटाबू गृह मंत्री, भारत सरकार हम इस समय जहाँ खड़े हैं, वहाँ किसी समय लिच्छिवियों की राजधानी थी। यहीं गणतन्त्र का विकास हुआ था। गौतम बुद्ध को यह स्थान अत्यन्त प्रिय था। भगवान् महावीर तो यहाँ जन्मे ही थे। यहाँ के फल-फूलों और पैदावार की तारीफ चीनी यात्रियों तक ने की है। ऐसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान के दर्शनों की बड़ी लालसा थी, जो आज पूरी हुई है। इसे मैं अपना अहोभाग्य समझता हूँ। ___ आज सुबह में मैंने वैशाली-क्षेत्र की यात्रा की और यहाँ के प्राचीन ध्वंसावशेष देखा, सच कहता हूँ बड़ी प्रसन्नता हुई। अशोक का सिंह स्तंभ भी देखा। उसकी बगल में पालयुग की सुन्दर बुद्ध मूत्ति भी देखी। चकरामदास की शिशुशाला में मैंने बच्चों को अद्भुत कार्य करते देखा। जो इस उम्र के लड़के-लड़कियों के लिये प्रशिक्षण के बिना असंभव है। मुझे बताया गया कि ऐसी और भी कई शिशुशालाएं इस क्षेत्र में कार्य कर रही हैं / मैंने पहले से इसकी कल्पना नहीं कर रखी थी कि आपने इतना सारा कार्य कर लिया है। यह आपका दशम वैशाली-महोत्सव है। इतने समय में आपने प्रशंसनीय काम किया है, इसमें कोई संदेह नहीं। मैं आपकी शिशुशालओं की तारीफ करते नहीं थकता। आप इस काम को जारी रखें। इससे देश का बड़ा कल्याण होगा। देश की उन्नति में मेल का बड़ा स्थान है। जब गौतम बुद्ध अपने जीवन के अन्तिम वर्ष में वैशाली आ रहे थे, तब यहाँ आने के पहले वे पाटलिपुत्र में रुके थे। महापरिनिब्बाण सुत्त में यह कहानी दी हुई है। इस समय उन्होंने पाटलिपुत्र की महत्ता की भविष्यवाणी की और कहा था कि इसके तीन अंतराय (विघ्न) होंगे-अग्नि, जल और आपस की फूट / हमें इन अन्तरायों से बचना चाहिये। इस समय हमें प्राचीय वैशाली की गरिमा के दिनों की याद हो रही है। यह खुशी की बात है कि आप उसी पुराने स्थान पर यह महोत्सव मना रहे हैं जहाँ गणतन्त्र का 1. वशम वैशाली-महोत्सव के अवसर पर 15 अप्रैल 1954 को किये गये अध्यक्षीय भाषण के मुख्य अंश।