________________ 354 अमृत महोत्सव स्मृति ग्रंथ यशोविजयजी महाराज ने भक्ति की महिमा में बताया है : 'आगमशास्त्र रूप महासागर में डूबने पर मुझे यह सार मिला है कि श्री वीतराग प्रभु की भक्ति परमानन्द सम्पदाओं की बीज है।' 4 अत: हम प्रभु-भक्ति का आश्रय लेकर परमानन्द सम्पदा को प्राप्त करें। इसी में मानव जीवन की सफलता है, सार्थकता है। इति शुभम्। 4. सारमेतन्मया भक्तिर्भागवती लब्धं बीजं. श्रुताब्धेरवगाहनात्। परमानन्दसम्पदाम् / /