________________ 352 अमृत महोत्सव स्मृति ग्रंथ की रक्षार्थ समर्पित रहता है। वह दरिद्रों, दीनों, दुखियों में दीनानाथ कृपालू परमात्मा के दर्शन करता है। प्रभु दीनदयालू और जग-वत्सल है। प्रभु-भक्ति के प्रभाव से होनेवाली अनेक चमत्कारी घटनाओं को यद्यपि आधुनिक वैज्ञानिक युग के प्रबुद्ध मनुष्य कपोल-कल्पना मानते हैं, परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं है कि इससे तनाव से मुक्ति मिल जाती है। तनाव-ग्रसित मानव तनाव-मुक्त होने के लिए छटपटा रहा है। आधुनिक युग के भौतिकवादी परिवेशमें पले लोग घुटन, उत्पीड़न, मानसिक विकृति और तनाव के वातावरण में जी रहे हैं। उन्हें शान्ति नहीं। आधुनिक वैज्ञानिक विलास के साधनों ने मानव की विकृतियाँ बढ़ा दी हैं, इस तनाव-मुक्ति का एक ही सहारा है - प्रभु-भक्ति। प्रभु-भक्ति प्रेम, त्याग, परोपकार, सज्जनता आदि सद्गुणों का विकास करनेवाली महाशक्ति है। आधुनिक युग का अनिष्ट है-प्रदूषण। प्रदूषण के अनेक प्रकार हैं-जैसे नैतिक प्रदूषण (चरित्र-भ्रष्टता), पर्यावरण प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण अत्यधिक बढ़ गयी है, विलासिता के प्रति विशेष रुचि हो गयी है और देह सुख के साधन जुटाने के लिए संग्रहवृत्ति विस्तृत हो गयी है। मानव शिव से शव मात्र बन गया है क्योंकि देह तो नश्वर है। तृष्णातुर मानव की भयंकर स्वार्थ-लिप्सा ने जगत्-सुख-शान्ति की हरियाली को उजाड़ दिया है। उसकी विस्तारवादी अनैतिक दृष्टि ने वनों को नष्ट किया है, पशु-पक्षियों को समाप्त किया है और असहाय मनुष्यों को दुःखी किया है। आतंक और हिंसा का ताण्डव नृत्य इस नैतिक प्रदूषण का फल है। हम तभी सुखी हो सकते हैं, जब हमारा आकाश नीला दीख सके (धुएँ से आच्छादित नहीं), जंगल हरे-भरे हों, पशु-पक्षी छलांग लगाते, चौकड़ी भरते, कल्लोल करते दिखाई दें। ___ यह तभी संभव है जब मनुष्य प्रभु-भक्ति में अनुरक्त हो। प्रभु-भक्ति से ही नैतिकता का आविर्भाव संभव है। इसीसे प्रेम-भावना और निर्मलता आती है। इससे चरित्रोत्थान होता है। चरित्र से ही स्व-पर कल्याण होता है।