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छात्रावास का वायुमंडल न पूरा शिक्षकों के हाथ में रहता है, न विद्यार्थी-विद्यार्थिनियों के । समाज की सारी कमजोरियां अब छात्रालयों में प्रकट होने लगी हैं, यह नये जमाने की बात है। अनुभवी लोगों ने सलाह दी है कि जिस परिस्थिति का इलाज नहीं हो सकता, उसे सहन करना ही चाहिए-व्हाट कैननॉट बी क्योर्ड, मस्ट बी एंड्योर्ड।
अब सारी परिस्थिति सहन करके हो सके, इतना एकाग्र होकर पढ़ो। फिर कॉलेज में जाना। बड़ोदा अच्छा स्थान है। वहां मराठी, गुजराती और हिन्दी तीन भाषाएं चलती हैं। कालेज में तीन भाषा के सिर पर अंग्रेजी का राज्य चलता है। वहां के छात्रालय में अधिक संभाल करके रहना पड़ेगा।
हमारे जमाने में अंग्रेजों का राज्य था। अब स्वराज्य और प्रजा-राज्य है। अब देश में स्वर्ग पैदा करना या न करना हमारे ही हाथ में है। तुम्हारे जैसे व्यक्ति को अपनी तरफ से अत्यन्त पवित्र, उत्साही
और सेवा-परायण वायुमंडल पैदा करने की कोशिश करनी चाहिए। बाकी भारतमाता के भाग्य में जो होगा सो देखना पड़ेगा।
तुम लोग भीमताम, नैनीताल हो आयीं और हिमालय का दर्शन हुआ, तुम्हारा अभिनन्दन करता हूं।
जयपुर के पास वनस्थली है। हीरालाल शास्त्री बड़े अच्छे राष्ट्रभक्त विद्वान हैं । वे वनस्थली विद्यापीठ चलाते हैं । उनका परिचय पढ़े तो अच्छा है।
यहां मेरा स्वास्थ्य अच्छा है। किन्तु स्मरण-शक्ति कमजोर हो रही है। बहुत बातें भूल जाता हूं। पुराने परिचित आदमी भी पराए बन जाते हैं। इसका इलाज क्या बुढ़ापा कोई रोग नहीं कि दवा हो सके। कान से सुनायी नहीं देता। जयपुर गया तो लोगों की बातें कैसे सुनंगा न पत्र पढ़ सकता हूं। तुम्हारा पन पढ़कर बड़ी खुशी हुई। अब चि० सरोज और कुसुम तुमको लिखेंगी। चि० रूचिरा और तुमको इस बुढढे काका के सप्रेम अनेकानेक शुभाशिष । फिर से पत्र जरूर लिखो।
३०६ / समन्वय के साधक