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है। प्रारंभ के दिनों में रामायण के गजराती अनुवाद का एकाध अध्याय पहले पढ़ लेना, उसके बाद उसी का मूल संस्कृत पढ़ना। समझने की दृष्टि से ऐसी पूर्व तयारी बड़ी सहायक साबित होती है।
तुम्हारे पत्र का संतोष व्यक्त करने चला था, किन्तु मैंने तो शिक्षक सुलभ उपदेश ही दिया। संस्कृत वाचन के साथ-ही-साथ अंग्रेजी कविता पढ़ेगी तो दोनों एक-दूसरे के लिए पोषक और प्रेरक होंगे।
काडिनल न्यूमन की काव्य पंक्ति लिखकर तुमने अपने उद्गार भी दिए हैं, यह अच्छा है। मनुष्य को मनुष्य से ही विमुख देखकर कार्डिनल न्यूमन ने चेतावनी दी है। मंदिरों के शिखर और गिरजाघर के 'स्टीपल' के बारे में मैंने जो कहा है कि आकाश के आनंत्य में भी प्रभु बसते हैं, उस ओर मनुष्य का ध्यान आकर्षित करनेवाली ये उंगलियां हैं-यही विचार तुमने अपने पत्र में भी लिखा है।
अब तुमको एक सूचना दूं? हिमालय की उत्तुंग भव्यता और उसके दुर्गम विस्तार से प्रभावित होने के पश्चात् उन सधी हुई संस्कारी आंखों से सौराष्ट्र का समुद्र किनारे को फिर से निहारना, वह भी किनारे पर की किसी ऊंची पहाड़ी पर से, (घोघा की तरफ ऐसा स्थान होना चाहिए) तब फिर सागर का दर्शन भी तुम्हें सागर-गंभीर काव्य का साक्षात्कार करवायेगा। कालिदास ने सागर और हिमवान-दोनों को एक ही श्लोक में बिठाकर भारत भूमि की उत्तर-दक्षिण-मर्यादा का एक साथ स्मरण किया है-"समुद्र इव गांभीर्य धैर्येण हिमवान इव।" और जब तुम हवाई जहाज में बैठकर व्योम-विहार करोगी तब पहाड़, समुद्र और आकाश इस भगवान की विविध विभूति का एक साथ दर्शन और चिंतन कर सकोगी। फिर उसका भी काव्य स्फुरेगा।
अब समय का बजेट खुट जाने से पत्र यहां समाप्त करता हूं। चि० कल्पक, अरुणा, विजया और पुरुषोत्तम को भी सप्रेम शुभाशिष
काका के सप्रेम शुभाशिष
वर्धा
चंदन को
१३-१-३८ चिरंजीव चंदन,
लग्न संस्था के विषय में तुमने सवाल उठाया है :
जो लोग आर्थिक स्तर बढ़ाना चाहते हैं, वे लग्न समस्या को ज्यादा कठिन बनायेंगे ही। आर्थिक जीवन स्तर एक सीमा से अधिक बढ़ाने पर नैतिक जीवन स्तर नीचे उतरेगा ही और उच्च आदर्श को और नाजुक भावनाओं को ठेस पहुंचेगी। अपने यहां सन्यासी, वैरागी और तपस्वियों ने जीवन की आवश्यकताओं को कम करने की पराकाष्ठा की। प्रयोग के तौर पर बात अच्छी थी-है। उसके विपरीत गहस्थाश्रमी लोगों ने विलास करके अमर्याद संतति बढ़ाई, कार्य-कौशल्य को कम किया, यह बहत बुरा हुआ।
गृहस्थाश्रम में रहनेवाले लोगों का भौतिक जीवन-स्तर अल्पतम भी न हो, और न अधिकतम हो । शास्त्रीय दृष्टि से पूरा सोच कर इष्टतम-स्तर होना चाहिए।-अमरीकी दृष्टि से नहीं, किन्तु शास्त्रीय दृष्टि से इष्टतम स्तर तय करना चाहिए । मनुष्य की कार्य-शक्ति और सहन-शक्ति बढ़े, जीवन-शक्ति और
१. काकासाहेब की पुत्रवधू-सतीशभाई की पत्नी ।
पत्नावली/२६७