SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गांधीयुग के शादर्श दंपती चिरंजीवी प्रभावती देवी को मैं पूज्य गांधीजी की एक समर्थ कृति मानता हूं। परदे आदि पुरानी प्रथा को माननेवाले सनातनी समाज में जिसका जन्म हुआ उसी को प्रेम और सेवा जैसे स्त्रीसहज सद्गुणों के द्वारा आदर्श-पत्नी और आदर्श सुधारक समाजसेविका बनाने की हिम्मत और कला महात्माजी की ही थी। प्रभावतीजी का जन्म १९०६ में हुआ। जब वह चौदह वर्ष की बालिका थी तब उसका जयप्रकाश नारायण जैसे एक तेजस्वी नवयुवक के साथ विवाह हुआ। दाम्पत्य जीवन शुरू करने के पहले ही जयप्रकाशजी पश्चिम की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश गये और प्रभावती स्वदेश की नवयुगीन तेजस्वी शिक्षा प्राप्त करने के लिए महात्माजी के आश्रम में पहुंची। इस विवाहित लड़की को ब्रह्मचर्य की दीक्षा देने की हिम्मत और कुशलता महात्माजी ने दिखाई। - अपने पास आनेवाले शिष्यों को और शिष्याओं को मनमानी दीक्षा देनेवाले संत दुनिया में कम नहीं हैं। लेकिन महात्माजी ऐसे रूढिधर्मी स्वात्म-निष्ठ संत नहीं थे। उन्होंने प्रभावती के माता-पिता को और स्नेही संबंधियों को तेजस्वी सनातनी धर्म के संस्कार देना शुरू किया, और आश्रम में रहनेवाली नम्र, सात्त्विक, प्रेमल प्रभावती के अंदर सब तरह की सर्वोच्च धार्मिकता और तेजस्विता जाग्रत करने का अखंड प्रयास चलाया। इस युग का सद्भाग्य है कि प्रभावती के नाम लिखे हुए गांधीजी के पत्रों का संग्रह उपलब्ध है और वह पत्र-व्यवहार भी २० वर्ष तक चलता रहा। इसमें एक उत्तम चारित्र्यवती बाला को आदर्श पत्नी, आदर्श समाज-सेविका और (मैं अवश्य कहूंगा) आदर्श मोक्ष-साधिका बनाने की गांधीजी की कला प्रकट होती है। प्रभावती को जिस तरह ईश्वर की कृपा से आदर्श पिता मिले वैसे ही उसी परमात्मा की योजना के अनुसार उसे आदर्श पति और आदर्श गुरु भी मिले । श्री ब्रजकिशोरजी तो गांधीजी के चंपारण्य के आंदोलन में दाहिने हाथ थे। उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से प्रभावती को गांधीजी के आश्राम में भेजा। कहा जाता है कि उपनयन के द्वारा (जनेऊ देकर) गुरु नवयुवक को एक नया जन्म देता है। ब्रजकिशोरजी ने अपनी प्यारी लड़की को नया जन्म मिले इस हेतु गांधीजी के आश्रम में भेजा। और सचमुच प्रभावती का नया जन्म प्राप्त हुआ। मैं तो कहंगा कि प्रभावती का जयप्रकाशजी के साथ विवाह होना भी एक ईश्वरीय योजना ही थी। तेजस्वी जयप्रकाशजी को सात बरस की पश्चिमी विद्या पाने से गांधीजी का कार्य देश के लिए हितकर नहीं मालूम हुआ। भारत लौटते ही उन्होंने एक नये राष्ट्रसेवक दल में प्रवेश किया जो काफी हद तक गांधीविरोधी था। लेकिन जयप्रकाशजी की अद्भुत उदारता और निष्ठा को देखते सचमुच कहना ही पड़ता है कि प्रभावतीजयप्रकाशजी का संबंध ईश्वर की ही योजना थी। भारत आते ही जयप्रकाशजी ने देखा कि सीता-सावित्नी के जैसी यह आदर्श पत्नी प्रेम, सेवा और निष्ठा को लेकर पति के साथ सहजीवन के लिए पूर्णतया तैयार है। लेकिन वह ब्रह्मचर्य का व्रत ले चुकी है। पता नहीं उनके मन में क्या-क्या उधेड़-बुन चली होगी। लेकिन उन्होंने पूरी उदारता से और निष्ठा से परिस्थिति का स्वीकार किया। और इन दोनों का यह आदर्श दाम्पत्यजीवन अर्धशताब्दि से अधिक समय तक सुन्दर ढंग से चला। प्रकाश और प्रभा को राष्ट्रसेवा तो करनी ही थी। जयप्रकाशजी ने प्रभावती को गांधीमार्ग में अग्रसर होने से कभी मना नहीं किया। और राजनैतिक क्षेत्र में जयप्रकाशजी को अपने अलग रास्ते देखकर प्रभावती कभी अस्वस्थ नहीं हुई। लेकिन यह (परस्पर आदरयुक्त भले हो) द्वैत, दाम्पत्यजीवन में कहां तक चल सकता था। जयप्रकाशजी गांधीमार्ग में आ पहुंचे। देखते-देखते एक उज्जवल कांग्रेसी नेता बने। अगर गांधीजी की बातें पूर्णतया चल सकतीं, तो जयप्रकाश जी कांग्रेस के अधिपति भी बन जाते । २७६ / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy