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3. मानव-दर्शन
हम सबमें सीनियर मोस्ट
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बहुत कम लोग जानते हैं कि श्री विनोबा का और मेरा सम्बन्ध बहुत पुराना है। वह इतना पुराना है कि उन दिनों न मैंने गांधीजी का नाम सुना था, न विनोबा ने मैं बड़ौदा की एक राष्ट्रीयशाला का गंगनाथ भारतीय सर्व विद्यालय का - एक आचार्य था । और विनोबा बड़ौदा कॉलेज के एक विद्यार्थी थे । कॉलेज में उनकी द्वितीय भाषा संस्कृत नहीं, बल्कि फ्रेंच थी। उनका और मेरा सम्बन्ध प्रस्थापित होने का कोई कारण भी नहीं था ।
किन्तु आकाश के सितारे क्या नहीं कर सकते ? दक्षिण कर्नाटक के एक संस्कारी युवक उन दिनों गंगनाथ विद्यालय के संस्थापक वैरिस्टर श्री केशवराव देशपाण्डेजी से मिलने के लिए बड़ौदा आये । उनका नाम था मंजेश्वर गोविन्द पै । उन्होंने मुझे आकाश के सितारों के देशी नाम बताये। इतना ही नहीं, बल्कि उनका प्रत्यक्ष परिचय भी करवाया। पश्चिम का खगोल शास्त्र में जानता ही था । अब भारतीय ज्योतिषशास्त्र की पुस्तकें मैंने मंगवाईं और दोनों की मदद से आकाश के ग्रह-नक्षत्रोंको मैं पहचानने लगा । उनकी गति के बारे में गणित भी करने लगा ।
मेरा स्वभाव रहा प्रचारक का । मैंने आकाश के सितारों के काव्य का प्रचार शुरू कर दिया। यह समाचार बड़ौदा के कॉलेज में पहुंचा। वह सुनकर कॉलेज के चन्द विद्यार्थी मेरे पास आने लगे, और सूर्यास्त के बाद आकाश के सितारों का परिचय पाने लगे । विद्यार्थियों की संख्या जब बढ़ी, तब उनमें श्री विनायक नरहरे भावे भी खिंचकर आए। रात शुरू होने के बाद आकाश में जितने ग्रह और नक्षत्र दीख पड़ते हैं, उनका परिचय उन्होंने मुझे देखते-देखते पा लिया।
उनके साथ उनके एक मित्र आते थे । उन्हें गीता के बारे में दिलचस्पी थी । मैंने उनको गीता का स्वामी स्वरूपानन्दजी का अंग्रेजी का अनुवाद दिया था। मालूम नहीं विनोबा में कब गीता का आकर्षण पैदा हुआ और कब उन्होंने संस्कृत सीख ली। अनेक वर्षों के बाद जब मैंने उनके हाथ में स्वरूपानन्दवाली अपनी गीता देखी, तब मुझे पुराने दिनों की याद आई और तभी खयाल हुआ कि इनसे मेरा परिचय बहुत पुराना है ।
अभी मैं बिहार गया था, तब विनोबा से मिला था। उनके इर्द-गिर्द उनके शिष्य भी बैठे थे। मेरे बारे में बोलते हुए गणिती विनोबा ने अपने इर्द-गिर्द के लोगों से कहा, "वर्षों के हिसाब से मैं काकासाहेब से दस वर्ष छोटा हूं । किन्तु महीनों के हिसाब से मैं पौने तीन महीने बड़ा हूं।" मैंने विनोबा से पूछा, "मेरी जन्म तिथि आपको कैसे याद रही ?" उन्होंने कहा, "वेल्लोर जेल में साथ थे, तब आपने पहली दिसम्बर को उपवास किया था इसलिए तारीख याद रही।"
आश्रमवासी के नाते हम दोनों में सीनियर कौन है और जूनियर कौन है, यह भी एक विचित्र सवाल कभी-कभी पूछा जाता है ।
मैं गांधीजी से सन् १९१५ की फरवरी में मिला था । दक्षिण अफ्रीका का अपना कार्य पूरा करके वे
विचार चुनी हुई रचनाएं / २६३