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। इस ग्रंथ में
गांधी विचारधारा के प्रमुख व्याख्याता, स्वतंत्र चितक तथा सत्साहित्य के प्रणेता आचार्य काकासाहेब कालेलकर से संबंधित संस्मरण, काकासाहेब का आत्म-परिचय, उनके विचार तथा उनके कुछ चुने हुए पत्र दिये गए हैं।
संस्मरणों को पढ़कर पता चलता है कि काकासाहेब का व्यक्तित्व कितना प्रखर और उनकी सेवाएं कितनी बहुमुखी तथा दीर्घकालीन
आत्म-परिचय से मालूम होता है कि काकासाहेब में प्रारंभ से ही सेवा की कितनी गहरी लगन थी और उनकी प्रतिभा उन्हें इतने क्षेत्रों में ले गई कि वह एक व्यक्ति नहीं रहे, संस्था बन गए।
उनके विचार तो गागर में सागर की कहावत चरितार्थ करते हैं। उन्हें पढ़कर आनन्द तो आता ही है. प्रेरणा भी मिलती है।
पत्रावली के पत्र काकासाहेब के जीवन के, विशेषकर स्पन्दनशील हृदय के, विभिन्न पक्षों परप्रकाश डालते हैं।
परिशिष्ट में उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं की तालिका तथा पुस्तकों की सूची दी गई है।
अनेक चित्र भी दिये गए हैं। ग्रंथ सुपाठ्य तो है ही, संग्रहणीय भी है।
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