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________________ शिक्षण परिषद् हुई, उसमें गांधीजी ने मुझसे कहा कि 'हिन्दी ही हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा हो सकती है इस विषय पर मैं एक निबन्ध लिखूं। उसके अनुसार मैंने एक लेख लिखा और उसे परिषद् में पढ़ा। बाद में कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और आन्ध्र - दक्षिण के इन चार प्रान्तों में राष्ट्रभाषा प्रचार के लिए मुझे वहां भेजने का विचार गांधीजी को तुरन्त आया । बापूजी के कहने से भरुच परिषद् में मैंने हिन्दी प्रचार का पूरा समर्थन किया था। इसलिए इस काम के लिए दक्षिण में मुझे भेजने का विचार गांधीजी को आया, इसमें क्या आश्चर्य किसी नेता को अपनी सेवा अर्पण करके उनकी संस्था में दाखिल होने के बाद, जिस अनन्य निष्ठा से लश्करी लोग सौंपा हुआ काम ले लेते हैं, वैसी निष्ठा के बिना राष्ट्र की उन्नति हो नहीं सकती, ऐसा मानने वाला और उसके अनुसार क्रान्ति कार्य में दाखिल होने वाला मैं अपने को सौंपे हुए कार्य से इन्कार कैसे कर सकता था ! फिर भी मैंने गांधीजी से कहा, "आपकी आज्ञा मानकर यह सारा उत्तरदायित्व मैं लेने को तैयार हूं, किन्तु इस समय आप मुझे दक्षिण की तरफ भेजें, यह ठीक नहीं लगता । "आपके बारे में मैंने बहुत पढ़ा और बहुत सुना है। गुप्तरीति से सशस्त्र क्रान्ति का कार्य करने में विश्वास रखनेवाला में आपके पास आया हूं। आश्रम में रहकर सीधे आपके हाथ के नीचे रहकर काम करने का मौका मुझे मिलना चाहिए। आपके सिद्धान्त तो मैं जानता हूं, किन्तु उसके अनुसार काम करने की पद्धति मैं अच्छी तरह अपना सकूं, तभी मेरा मन पूर्ण रूप से तैयार हो पायेगा और मैं कार्य-समर्थ बनूंगा । इसलिए मैं आपके पास आया और तुरन्त आपने मुझे दूर भेज दिया, यह परिस्थिति मेरे लिए, मेरे स्वभाव के लिए अनुकूल नहीं है । "बड़ौदा के मेरे एक पुराने साथी आश्रम में आए हैं, वे तमिलनाडु के ही हैं । उनको यह काम सौंप सकते हैं ।" मेरी बात गांधीजी को जंची और उन्होंने श्री राजंगम् को, जिनको हम 'अण्णा' करते थे और जिन्होंने आगे चलकर 'हरिहर शर्मा' नाम धारण किया था, दक्षिण में हिन्दी प्रचार का काम सौंपकर मद्रास भेज दिया । दक्षिण के चार प्रान्तों का काम गांधीजी ने शुरू किया और गांधीजी हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष हुए तब दक्षिण का काम सम्मेलन की एक शाखा ही बन गया। इस तरह दक्षिण के काम पर सम्मेलन ने अपना राज्य चलाया । सारा इतिहास मुझे यहां नहीं देना है, किन्तु थोड़े ही दिनों में गांधीजी को अनुभव हुआ कि सम्मेलन ऐसी प्रवृतियां उत्पन्न नहीं कर सकता, काम चलाने की कुशलता भी उसके पास पूरी नहीं, किन्तु वह अपना अधिकार लाने का आग्रह रखता है। इस स्थिति में दक्षिण का काम बिगड़ जाएगा। गांधीजी ने दृढ़ता-पूर्वक सम्मेलन से बातचीत की दक्षिण का हिन्दी प्रचार का काम वापस लिया और उसे स्वतन्त्र रीति से चलाने लगे। उसके बाद यह काम अच्छा चला। राजस्थान के मारवाड़ी लोगों के नेता श्री जमनालाल बजाज ने इस काम के लिए भी गांधीजी को उत्तम से उत्तम सहायता दी। इसलिए पैसों की कोई चिन्ता न रही। 1 ( २ ) सन् १९३५ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने दूसरी बार गांधीजी को अध्यक्ष बनाया। वह अधिवेशन भी इन्दौर में था । उसमें गांधीजी ने एक प्रस्ताव पास कराया कि दक्षिण के चार प्रान्त छोड़कर बाकी के भारत के अहिन्दी प्रदेशों में हिन्दी का प्रचार करने की प्रवृति शुरू करें। कश्मीर, सिंध, गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल, उड़ीसा, आसाम आदि प्रान्तों में राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार करने का काम मेरे सिर पर आया । १६२ / समन्वय के साधक
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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