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वर्णी महान !
वर्णी महान् ! वर्णी महान् !
युग युग तक श्रद्धा से मानव गावेगा तेरा यशोगान वर्णी महान् ! वर्णी महान् !!
सिखाया
युग धर्म जीवन का म बताया गुमराह युगों के मानव को फिर जीवन पथ दिखलाया
लघुमानव है कितना समर्थ बतलाता तेरा स्वाभिमन वर्णी महान् ! वर्णी महान् !!
कहना जग हम स्वछन्द नहीं टूटे जीवन के बन्ध नहीं इस पर बोले गुरूवर्य ? आप "मानव इतना निष्पन्द नहीं तोड़ विवशता के बन्धन बन जाओ अब भी युगप्रधान । वर्णी महान् ! वर्णी महान् !!
तुम जगा रहे हो निखिल विश्व लेकर के कर में ज्ञान दीप वह ज्ञान कि जिससे मानव का अन्तस्तल है बिलकुल समीप
युग युग तक अनुप्राणित होगा पा कर जग तेरा ज्ञान दान |
वर्णी महान् ! वर्णी महान् !!
उज्वल यश-किरणों से तेरी हो रहा व्याप्त यह धरा धाम तू इस युग का योगी महान् युग का तुझको शत शत प्रणाम्
श्रद्धा से नत हो उठे आज चरणों में तेरे प्राण प्राण |
वर्णी महान् ! वर्णी महान् !!
सामर ]
संतावन
--फूलचन्द 'मधुर'