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________________ वर्णी-अभिनन्दन ग्रन्थ है २२ । विद्वानोंने निश्चित किया है कि महाभारतका युद्ध ईसासे लगभग १४०० वर्ष पूर्व हुअ परन्तु महाभारतकी कथा ईसाकी चौथी सदी तक लिखी जाती रही। इसलिए वेदोंमें जिस संस्कृतिका वर्णन है वही इस युगकी संस्कृति कही जा सकती है। उसमें से इस प्रदेशकी विशेषता खोजना सरल नहीं है। महाभारतकी सहायतासे कुछ निष्कर्ष अवश्य निकाले जा सकते हैं। ऊपर कहा गया है, इस देशमें 'एक राज्य शासन प्रणाली थी जैसा कि नलकी कथा में आता है और फिर कौटिल्यके अर्थशास्त्रमें कहा गया है । इस देशके हाथी उत्तम होते थे। तब इस प्रदेशके योद्धा हाथी पर चढ़ कर युद्ध करनेमें प्रवीण रहे होंगे। महाभारत युद्ध में स्थान स्थान पर चेदिगणकी वीरताका वणन है। विशेषकर कर्णपर्वमें पांचालोंके बाद ये ही बार बार कर्णके सामने आते हैं। अपने सेनापति धृष्टकेतुके मर जाने पर भी इनकी वीरतामें अन्तर नहीं आया। महाभारत युद्धके पहले दिन पाण्डवोंने जो क्रौञ्च व्यूह बनाया था द्रुपद (पांचाल ) उसके सिर स्थान पर था। नेत्र स्थान पर कुन्ती भोज और चैद्य थे अर्थात् ये तीनों सेनाके अग्रभागमें थे। सभी चक्रवर्तियोंकी भांति ये लोग भी मल्ल-युद्धके प्रेमी रहे होंगे। इन्द्रने जिस प्रकार चेदि देश और उसके लोगोंकी प्रशंसा की है वह ऊपर आ चुकी है । कर्णपर्वमें शल्यसे विवाद करते हुए कर्ण ने कहा है-"कुरु, शाल्य, पाञ्चाल, मत्स्य, नैमिष, कौशल काशी, पौंड्र, कलिंग, मागध, और चेदि देशके उत्पन्न महात्मा मनुष्य ही शाश्वत धर्मको जानते हैं 33 । यद्यपि यह बहुत बादमें जोड़ा गया जान पड़ता है तो भी महाभारत कालीन इस प्रदेशके निवासी साधु और सजन ही रहे होंगे । यो तो कर्ण के शब्दोंमें “सब देशोंमें दुष्ट और साधु रहते हैं३४ ।" वसु चैद्योपरिचरके कालमें अहिंसा (अर्थात् यज्ञमें पशुके बजाय अन्नकी आहुति देनेकी प्रथा ) और भक्तिप्रधान एकान्तिक धर्म (कर्मकाण्ड और तपके विरोधमें ) की लहर चली थी। महाभारत कालमें कृष्ण, बलराम उसके समर्थक थे तथा सात्वतोंमें उसका विशेष रूपसे प्रचार भी था३५ । परन्तु चैद्योंने भी इस नये धर्मको अपना लिया था इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता फिर भी यह अनुमान लगाना बहुत कठिन नहीं है कि जिस धर्मका प्रवर्तन उनके एक पूर्वजने किया था और जो उनके (२९) भा. इति. रूपरेखा, २१९ (३०) देखो (५) (३१) महाभारत भीष्मपर्व, अध्याय ५०, श्लोक ४६-४९ (३२) देखो (१०) (३३) महाभारत कर्णपर्व, अध्याय ४५, श्लोक १४-१६ (३४) , , , (३५) भारतीय इतिहासकी रूपरेखा, पृष्ठ २४६
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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