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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ को ललकारा था । शिशुपालका वध करते समय श्रीकृष्णने उसके जो दोष गिनाये थे उनसे पता लगता है वह आचारविहीन भी था जैसे सभी साम्राज्यवादी होते हैं । उसने तपस्वी वभ्र की पत्नी और करूष देशके राजाका रूप धरकर उसकी वाग्दता भद्राका जो विशालापतिकी पुत्री थी, हरण किया था। शिशुपालकी मृत्यु के पश्चात चेदि राज्य का शासक उसका पुत्र धृष्टकेतु हुआ वह कृष्ण और पाण्डव दोनोंका मित्र था । दुर्योधनके लिए जब कर्ण दिग्विजय करने के लिए निकले थे तब उन्हें इसी शिशुपाल पुत्रसे युद्ध करना पड़ा था । यह अद्भुत वीर था । अश्वत्थामा, रुक्म और प्रद्युम्न के साथ उसकी गिनती होती थी२० । लिखा है-"महा यशस्वी, महावीर्यवान, महारथ, शिशुपालपुत्र धृष्टकेतु युद्ध होने पर संग्राममें काल स्वरूप हो जाते हैं. १ ।" वह पाण्डवोंकी सेनाके आगे चलने वाला था२२ । युद्ध में जब वह महारथ पौरवसे युद्ध करने चला तो महाभारतकारने लिखा है, "यह युद्ध ऐसा था जैसे ऋतुमति सिहंनीके सगंमके समय दो सिंह एक दूसरीकी ओर दौड़ते है२३ ।" इसी युद्ध में अपने पुत्र सहित वह द्रोणके हाथसे मारा गया था। उसकी लाशको देखकर कौरवमाता गान्धारीने कृष्णसे कहा था-'हेकृष्ण द्रोणके अस्त्र जिसने विफल कर दिये उसी द्रोण द्वारा मारे गये इस अद्भुत वीरको देखो२४।' धृष्टकेतुके पश्चात उसका भाई शरभ चेदि राज्यका स्वामी हुश्रा । अर्जुन जब अश्वमेध यज्ञका घोड़ा लेकर निकले तब वे शक्ति (शक्तिमति) नामकी रमणीय नगरीमें इसी शिशुपाल पुत्र शरभद्वारा पूजित हुए थे २५ । वैसे तो सारा भारत ही तब दुर्बल हो गया था परन्तु चेदि नरेशके पास सेनाका प्रभाव नहीं होगा। शिशुपालके पास कई अक्षौहिणी सेना थी लेकिन धृष्टकेतु केवल एक अक्षौहिणी सेना लेकर भारत युद्ध में सम्मिलित हुए थे । शरभके साथ महाभारत युग भी समाप्त हो जाता है । यद्यपि इसके बाद चेदिका कोई क्रमवद्ध इतिहास नहीं मिलता परन्तु “चेदि" नाम श्रआधुनिक काल तक चलता रहता है । महाजानपाद युगके सोलह जानपदोंमें एक चेदि भी है। वह वत्सके साथ आता है । जैन ग्रथोंके २५३ राज्योंमें भी चेदि उपस्थित है और शुक्तिमती अभी तक उसकी राजधानी है। ___ महाभारतमें धृष्टकेतुको एक स्थानपर'धृष्टकेतुश्च चेदीनां प्रणेता पार्थिवा ययौ । “चेद गणका स्वामी कहा है२६ । दूसरे स्थान पर चेदि,काशी और करूष गणोंका नायक सेनापति कहा है २० । (२०) महामारत उद्योग पर्व, अध्याय ५०, श्लोक ३० (२१) , , , ५१ ,, ४४ (२२) ,, भीम पर्व १५ (२४) ,, स्त्री पर्व , २५ ,, २० ,, आश्वमेधिक पर्व ,, ८३ ,, ३ ,, उद्योगपर्व ,, १९६ ,, २३ , , , २ (२७)
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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