SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 661
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्णी-अभिनन्दन ग्रन्थ की दलोंमें भिड़न्त भी हो जाया करता था। यह द्वन्द्व कभी कभी तीन तीन रात चलता था, जिसमें जनता बड़ी दिलचस्पी लेती थी। एक बार जब उक्त दोनों गोलोंमें द्वन्द्व चल रहा था, तभी श्री चौबेजीने पुरोहित-गोलकी औरसे संस्कृतका एक स्व-रचित पद्य गाकर सुनाया। श्री व्यास-गोलमें इसकी जोड़का कोई छन्द कहनेवाला नहीं था । फलतः उसे हार मान लेनी पड़ी । पुरोहितजीने चौबेजीकी पीठ ठोंकी और उन्हें अपनी गोलका नेता बनाया। इतना ही नहीं इनकी ख्याति बढ़ाने के उद्देश्यसे श्री पुरोहितजीने अपने ही व्ययसे श्रीमद्भागवतकी प्रति मंगाकर और स्वयं ही यजमान बनकर इनसे विधिपूर्वक उसका श्रवण किया । इससे इनकी इतनी ख्याति फैली कि अब पुराणोंके द्वारा उनकी स्वतंत्र आजीविका भी चलने लगी। अब अग्रजकी कठोरता प्रेम और श्रद्धामें शनैः शनैः परिवर्तित होने लगी। उपर्युक्त घटनाके पश्चात् शैर-साहित्य के भंडारको भरनेमें चौबे जीने बड़ा योग दिया। उनके सम्बन्धकी ऐसी ही एक दूसरी घटना है । उक्त दोनों गोलों में प्रतिद्वन्दिता चल रही थी। दो दिवस हो गये थे। तीसरी रात भी जब आधी बीत चुकी थी तो व्यास-गोलकी अोरसे एक अमोघ अस्र छोड़ा गया जो संभवतः इस प्रकार था अम्बा को मिला चूड़ामणि किससे बताना । इस पे ही आज हार जीत मीत मनाना। कुछ क्षण पुरोहितजीकी गोलमें सन्नाटा रहा। श्रोता समझते थे अब पुरोहितजीको गोल हारी। अकस्मात् चौबेजीको सप्त-शतीके द्वितीय अध्यायके "क्षीरोदश्चोमलं हारमजरेच तथाम्बरं चूड़ामणि, तथा दिव्यं कुण्डले कटकानिच' की याद आ गयी, तत्काल ही उन्होंने गोलके एक आशुकवि स्व. श्री बोदन स्वर्णकारकी सहायतासे, लेखकको जैसा याद है, निम्न पद्य गाकर सुना दिया उपहार क्षीर सागर ने हार को दियो । ताही सौ दिव्य अम्बर चूड़ामणी लियो। देवन के अस्त्र शस्त्र दिव्य भूषण धारे । मैया ने असुर मारे भूभार उतारे। अपार भीड़में से सहसा तालियों की तड़ातड़ ध्वनि उठ पड़ी और जय पराजयका निर्णय हो गया। ___ इन्होंने दो ही वर्षमें नगरके तत्कालीन प्रसिद्ध ज्योतिषी श्री मथुराप्रसादजी तिवारीसे मुहूर्तचिन्तामणि, नीलकण्ठी, बृहज्जातक और गृहलाघव पंचतारा तक पढ़ लिया था। तिवारीजी ग्रहलाघव पंचतारा तक ही पढ़े थे, परन्तु चौबेजीने अपनी प्रखर प्रतिभा द्वारा सम्पूर्ण ग्रहलाघव और लीलावतीका गणित सिद्ध कर लिया था। एक वर्ष श्रापका बनाया हुआ पंचांग भी प्रकाशित हुआ था।
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy