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बुन्देली लोक-कवि ईसुरी
श्री गौरीशङ्कर द्विवेदी 'शङ्कर'
__कवि प्रसविनी बुन्देलखण्डकी भूमिका अतीत बड़ा ही गौरवमय रहा है, प्रकृतिने बुन्देलखण्ड की भूमिको अनोखी छटा प्रदान की है, ऊंची नीची विन्ध्याचल की शृखलाबद्ध पर्वत मालाएं, सघनबन-कुंज, सर-सरिताएं आदि ऐसे उपक्रम हैं जिनकी रमणीयताको देखकर मानव-हृदय अपने आप आनन्द विभोर हो जाता है । यहांकी भूमि ही प्राकृतिक कवित्व-गुण प्रदान करनेकी शक्ति रखती है।
आदिकवि वाल्मीकीजी, कृष्णद्वैपायन वेदव्यासजी, मित्रमिश्र, काशीनाथ मिश्र, तुलसी, केशव, बिहारीलाल और पद्माकर जैसे संस्कृत और हिन्दी साहित्य-संसारके श्रेष्टतम कवियोंकी प्रतिभा को प्रसूत करनेका सौभाग्य बुन्देलखण्ड ही की भूमिको प्राप्त है।
इनके अतिरिक्त और भो कितने ही सुकवियोंके महाकाव्य अभी प्रकाश ही में नहीं आये हैं यह तो हुई शिक्षित समुदायके कवियोंके सम्बन्धको बात, किन्तु जन साधारणमें भी ऐसे ऐसे गीतोंका प्रचार है जिनको सुनकर तबियत फड़क उठती है । वे गीत हमारी निधि है और युग युगसे हमारे ग्रामवासियों द्वारा अब तक सुरक्षित रुपमें वंशपरम्परासे चले आ रहे हैं। उन गीतोंको हम 'ग्राम-गीत' या 'लोक-गीत' कहते हैं। ग्राम-गीत या लोक-गीत
भारतवर्ष ग्रामोंका देश है और ग्राम भाषाएं ही हमारे साहित्यकी जननी हैं । साहित्यके क्रमिक विकासके विवरण का अध्ययन करनेसे यह और भी अधिक स्पष्ट हो जाता है।
ग्राम-गीतोंके जन्मदाता
ग्राम-गीतोंके जन्मदाता या जन्मदात्री वे ही भोले भाले ग्रामीण या भोली भाली विदुषियां हैं जिनके विशाल हृदय गांवोंमें रहते हुए भी विश्व-प्रेम और विश्व-हितके अभिलाषी हुश्रा करते हैं, जो नित्य प्रति कहा करते हैं कि भगवान सबका भला करें' तब हमारा भी भला होगा। बनावटसे कोसों दूर रहकर जिनमें त्याग, संतोष, क्षमा, करुणा और शांति का निवास रहता
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