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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
विनय के साथ सुधार-भावना
एक बार जाड़ेके दिन थे । माहाउट पड़ रही थी। विद्यार्थी कुछ पढरहे थे, कुछ खेल रहे थे, एक कक्षमें कुछ विद्यार्थी अनेक प्रकारकी किशोर-सुलभ बातें कर रहे थे, एक विद्यार्थी खड़ा होकर कुछ भाषण देने लगा, भाषण क्या था अनर्गल-प्रलाप, क्रम-हीन वाक्य रचना। कक्षमें सभी विद्मार्थी उस राग रंगमें इतने मग्न थे कि बाह्य वातावरण का किसी को भान ही नहीं रहा कि अक्समात् एक प्रतिमाने प्रवेश किया । जब वह हाथ जोड़ कर कुछ कहने को हुए तो सभीके पैरके नीचे की जमीन खिसक गयी. वे बोले गोवर्धन जी ! यह पाजामा आप हमें देने की कृपा करें तो अच्छा हो इसमें दो गरीबोंके शरीर ढकेंगे, इसके बाद थोड़ा बहत समझा कर चले गये । बात यह थी कि गोवर्धनने ढीली मुहरी का लंक्लाट का पाजामा पहन रक्खा था । संस्कृत विद्यालयोंमें वेष भूषा आदि का अधिक आदर नहीं होता और फिर वाजपेयी जी जैसे निसर्ग सरल, उसपर भी कांग्रेस भक्त, शुद्ध सरल खद्दरके अनन्य उपासक देख रहे थे; संस्कृत का विद्यार्थी, धोती नहीं पाजामा, वह भी चूड़ीदार नहीं ढीला, और वज्रपात तो यह हो गया कि वह खद्दर का न होकर लंक्लाट का था। अस्तु हम लोगोंने छानवीन की कि यह कब और किधरसे आ गये । दूसरे दिन निग्न कक्षाके विद्यार्थीने बताया कि रात को जब पानी बरस रहा था सड़क पर लघुशंका करने गया तो सड़क पर कुछ दूर बत्ती चमकी फिर अचानक गुम हो गयी। बस फिर क्या था सब कुछ ज्ञात हो गया। कर्तव्य प्रियता
जब वाजपेयीजी टाउन एरिया कमेटीके सदस्य थे तो कभी कभी पानी बरसनेके समय घूम घूम कर लालटेनोंको खोलकर देखते थे कि कहीं नौकर तेल तो कम नहीं डाल गया। एक बार सत्याग्रहमें भाग लेनेके कारण आपको छै महीनेके लिए जेल भी जाना पड़ा था पर इतने दिनों वहां आपने भुजे चने तथा दूधको छोड़कर और कुछ ग्रहण न किया। सार्वजनिक संस्थाओं के लिए चन्दा करना विषपानकी भांति कठिन कार्य है फिर भी वाजपेयी जी बड़े धैर्यके साथ उसे किया करते थे । पर साथ ही साथ अपने अन्तः करणकी ध्वनिको वे मन्द नहीं होने देते थे।
इटावा जिलेके एक ग्राममें एक रईसके यहां उपनयन संस्कार था। आयोजन भी वैभवके अनुसार ही हुआ। विद्यालयके लिए चन्दाका सुयोग देख कर वाजपेयी जी भी पहुंचे । प्रान्तके अनेक रईस उपस्थित थे। अातिथ्य महोदयने वाजपेयीजोसे भोजनका आग्रह किया पर यह तो निकट सम्बन्धीको छोड़कर
और कहीं अन्न ग्रहण करते ही न थे तो यह कहा गया कि कमसे कम खोयेकी मिठाई तो खा ही लीजिये। इन्होंने सोचा कि कहीं ऐसा न हो कि यह अप्रसन्न हो जाय तो विद्यालयकी हानि हो। अतः इन्होंने कुछ पेड़े लेकर इच्छा न होने पर भी पानीके साथ निगल लिये । चलते समय चन्देकी प्रार्थना की । उन महानुभावने पांच रुपये दे दिये, इन्होंने बहुत कुछ कहा पर वह तो इससे आगे 'सूच्यंग्रे न केशव' पर अड़ गये । रईस
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