SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 629
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिनन्दन ग्रन्थ सहन नहीं कर सकती। पतझड़ का मौसम केवल दो महिने रहता है, बाकी दस महिने संसार में दरियाली छायी रहती है, फूल खिलते रहते हैं, फल लगते रहते हैं । टीकमगढ़ से लगा हुआ एक वन है, उसे खैरई कहते हैं । श्राजसे पांच साल पहिले उसमें आग लग गयी थी, सारा जंगल जले अधजले ठूंठोंसे भर गया था। आज कोई व्यक्ति उस वन को देखे तो मेरी बात पर विश्वास नहीं करेगा। श्राज वहां असंख्य नये-नये तरुण वृक्ष उठ आये हैं खूब पने पने सुन्दर | अग्नि उस महाविनाशके चिन्ह तक नहीं रह गये, घाव ऐसा भर गया है कि खरोंच तक नहीं बची। अत्यन्त विकृत रूपमें है, सड़ रहा है, गल रहा है; किन्तु प्रकृति का नहीं है, निर्माण शाश्वत है; मृत्यु जीवन पर विजय नहीं पा सकती, बुन्देलखंड का घाव या नियम अटल है । विनाश शाश्वत जीवन मृत्यु पर विजयी होता है। युन्देलखंड सनातन जीवन का एक स्पन्दन नारायणदास था जब तक उस जैसे व्यक्ति यहां आते रहेंगे तब तक बुन्देलखंड का श्रात्मा नष्ट न होगा, वह एक चिन्ह था कि मानवता अपने दर्द को दूर करना चाहती है, खैरईके जंगल में जिन्होंने आग लगायी थी, उन्हें राज्यसे क्या दण्ड मिला, यह मैं नहीं जानता पर शाप के भागी अवश्य हुए। मनुष्यता अपने सुखचैन में आग लगाने वालों को पहिचान गयी है। मेरे एक छोटेसे मुहल्ले में चीदह बच्चा की मृत्यु और उपयुक्त तथा पौष्टिक भोजन के अभाव में मां न बन सकने वालो नारी का शाप व्यर्थ नहीं जायगा । स्वर्ग की सीमाएं मनुष्य को दृष्टिगोचर होने लगी हैं. वे स्वयं बढ़ी श्रा रही हैं इस ओर जिस दिन बुन्देलखंड स्वर्ग बन जायगा, जब यहां उत्पन्न होने वाला प्रत्येक बालक बूढ़ा होकर ही अपनी जीवन यात्रा समाप्त करेगा, जिस दिन प्रत्येक नारी का गोद भरी पूरी रहेगी, उस दिन मनुष्य देवता बन जायगा, और तब तक यदि मैं जीता रहा तो सबसे पहिले मेरी कलम बुन्देलखंडके विजयगीत बोल उठेगी, किन्तु मैंन रहा तो मेरा वर्ग रहेगा, कलमवालों की परम्परा सदासे अटूट चली आ रही है, बुन्देलखंड के कीर्तिगान के लिए चारणों की कमी नहीं होगी । ५४२
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy